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मैं जिनभाषित का नियमित पाठक हूँ। जिनभाषित जैन | व्यावहारिक उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर सका तो हम विश्व के संस्कृति की सम्पूर्ण एवं उच्च कोटि की पत्रिका है। जैन संस्कृति | समक्ष इन सिद्धान्तों को प्रभावी ढंग से कैसे प्रस्तुत कर सकेंगे? के विविध व्यावहारिक एवं लोकोपयोगी पक्षों को समाहित कर | अब यह आवश्यक है कि हमारा आध्यात्मिक एवं सामाजिक आप प्रत्येक अंक को पूर्णता एवं भव्यता प्रदान करते है। नेतृत्व अपने विचार और चिंतन को नये आयाम दे, जैन धर्म के
जिनभाषित मई, 2002 में प्रकाशित संपादकीय 'दोनों पूजा | शाश्वत एवं वैज्ञानिक सिद्धान्तों एवं मूल्यों को स्वयं आत्मसात् पद्धितियाँ आगम सम्मत' पढ़कर हार्दिक प्रसन्नता हुई। इस करने के जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करे और पंथ का रूप लेते मतभेदों संपादकीय ने आगम के आधार पर समन्वयात्मक चिंतन के लिए को समाप्त करने के लिए अपनी साहसिक, सामयिक, प्रभावी एवं नए वस्तुनिष्ठ आयाम दिए हैं। हमारे आध्यात्मिक संतों और वरिष्ठ | समाज-उपयोगी सलाह दे। विद्वानों द्वारा जैन धर्म में अन्तर्निहित इसी प्रकार के समन्वयात्मक । मुझे विश्वास है कि आपके संपादकत्व में इसी प्रकार की बिन्दुओं का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। नीर-क्षीर के विवेक | विवेकपूर्ण एवं स्वस्थ परम्पराएँ स्थापित, पुष्पित एवं फलित होती से ओतप्रोत आपका यह संपादकीय अत्यधिक दूरदृष्टिपरक है।। रहेंगी। प्रत्येक गृहस्थ को अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति के लिए सामाजिक
सुरेश जैन, आई.ए.एस. रूप से स्वीकृत निम्नांकित दो पूजन पद्धतियाँ उपलब्ध हैं
30, निशात कॉलोनी, भोपाल, म.प्र. 1. सचित्त द्रव्यात्मक पूजापद्धति जिसमें पापबंध अल्प
'जिनभाषित' बराबर मिल रहा है। आपके द्वारा सम्पादित और पुण्य बन्ध अधिकतम होता है।
'जिनभाषित' में अच्छे विचार एवं समाचार आते हैं। पिछले अंक 2. अचित्त द्रव्यात्मक तेरहपन्थी पूजा विधि जिसमें पाप
में आपने बीसपन्थ और तेरहपन्थ के सामंजस्य के बारे में बड़ा ही बन्ध अल्पतम और पुण्य बन्ध अधिकतम होता है।
सुन्दर लेख लिखा है। सभी लोग इसको पढ़कर भ्रम दूर करेंगे अर्थात् दोनों पद्धतियों के द्वारा पूजन करने से पुण्य बंध तो | तथा आपस म भाईचार से रहगे।
हारा पजन करने से पण्य तो | तथा आपस में भाईचारे से रहेंगे। वास्तव में पूजा पद्धति का भेद समान ही होता है केवल हिंसा एक में अल्प और दूसरी में
कोई भेद नहीं है। जिसकी जैसी परम्परा है उसको उसी के द्वारा अल्पतम होती है। हम अपनी रुचि और अपने परिवार की
धर्मवृद्धि करनी चाहिए। परम्परा के आधार पर किसी भी पद्धति से पूजन करने के
महावीर प्रसाद जैन लालासवाला
3, देवीपुरा कोठी सीकर (राज.) लिए स्वतंत्र हैं। हम अपने विवेक के आधार पर अपनी पूजन
अचानक आठ दिन पूर्व मन्दिर जी में पिछले वर्ष की माह पद्धति का चुनाव करें और किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अपनाई
मई की 'जिनभाषित' पत्रिका मेरी पुत्रवधू को मिली। वह मेरे जा रही पूजन पद्धति का किसी प्रकार से विरोध न करें। इस
पढ़ने के लिए ले आयी। जिनभाषित' तो जिनभाषित ही है। बहुत ढंग से हम देश के समक्ष जैन धर्म के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त
अच्छी और उपयोगी लगी। आपका सृजन गुणवत्तात्मक एवं अहिंसा एवं अनेकांत का प्रभावी उदाहरण प्रस्तुत कर सकेंगे।
अत्युत्तम है। यदि जैन समाज अपने विभिन्न घटकों के बीच ही अपने
ज्ञानमाला जैन आधारभूत सिद्धान्तों-अहिंसा, अनेकांत एवं स्याद्वाद के
A-332, ऐशबाग, भोपाल
मैनपुरी में अतीव धर्म प्रभावना
परमपूज्य संत शिरोमणि आ. श्री विद्यासागर जी महाराज के सुयोग्य शिष्य पूज्य मुनि श्री समतासागर जी, पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जी एवं ऐलक श्री निश्चयसागर जी का कन्नौज पंच कल्याणक के पश्चात् मैनपुरी आगमन 31 मई को हुआ। समाज ने उत्साहपूर्वक गाजे बाजे के साथ स्वागत किया। संघ का प्रवास बड़े जैन मंदिर जी में हो रहा है। दि. 5 जनू से 15 दिवसीय ज्ञान विद्या शिक्षण शिविर का आयोजन किया गया।
शिक्षण शिविर में प्रातः जैन सिद्धान्त शिक्षण की कक्षा श्री प्रमाण सागर जी द्वारा, दोपहर को वृहद् द्रव्य संग्रह की कक्षा मुनि श्री समता सागर जी द्वारा तथा समयसार की कक्षा मुनि श्री प्रमाण सागर जी द्वारा ली जाती थी। शाम को आचार्यभक्ति व आरती के पश्चात् शंका समाधान तथा मेरी भावना की कक्षायें होती थीं। ऐलकश्री बच्चों की कक्षा लेते थे। 9 जून को संघ के सान्निध्य में भगवान. शांतिनाथ का निर्वाण कल्याणक मनाया गया।
-जुलाई 2002 जिनभाषित
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