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________________ कार्यालय में उपलब्ध है। अधिवेशन में अन्य उपस्थित विद्वान् वक्ताओं में-प्रो. डॉ. 2. ज्ञानोदय इतिहास पुरस्कार - इस पुरस्कार के अंतर्गत गजकुमार शहा (धुले), डॉ. पद्मा पाटील (कोल्हापुर), डॉ. 11,000 रुपये की नकद राशि एवं प्रशस्ति प्रदान की जाती है। जी.के.माने (अमरावती), डॉ. सौ. नलिनी जोशी (भण्डारकर श्रीमती शांतिदेवी रतनलाल बोबरा की स्मृति में श्री सूरजमल जी इंस्टीट्यूट, पुणे), डॉ वी. के. चौगुले (हेरले, हातकडंगले), डॉ. बोबरा, इंदौर के सौजन्य से स्थापित ज्ञानोदय इतिहास पुरस्कार की विद्याधर जोहरापुरकर, श्री वीरकुमार दोशी (आकलूज) डॉ. सी. स्थापना 1998 में की गई। अब तक दो विद्वानों को सम्मानित एन. चौगुले, प्रो. सुधीर कोठावदे, प्रो. डॉ. विद्यावती जैन (आरा), किया जा चुका है। विगत 5 वर्षों में जैन इतिहास के क्षेत्र में प्राचार्या हेमलता जोहरापुरकर (इचलकरंजी), राजाभाऊ मौलिक शोध कार्य हेतु यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है। चयनित डोंणगाँवकर, प्रो. कमलाकर हणवंते, प्रो. एस.डी. खेरनार, प्रो. कृति के प्रस्तावक को भी 1000 रुपये की सम्मान राशि से सम्मानित अ.म. सुतार, प्रो. आबासाहेब शिंदे, डॉ. दीपक तुपकर, सौ. लीना किया जायेगा। प्रस्ताव हेतु नियमावली एवं प्रस्ताव पत्र कार्यालय चवरे, प्रो. अजय फुलंवरकर, डॉ. प्रकाश पनवेलकर, श्रीशरद मेघाल, श्री पदमाकर क्षीरसागर, प्रो. प्रवीण वैद्य, प्रो. रतिकान्त में उपलब्ध हैं। शाहा, प्रो. प्रदीप फलटणे आदि प्रमुख थे। वर्ष 2000 एवं 2001 हेतु उक्त दोनों पुरस्कारों की घोषणा इसका उद्घाटन अमरावती विश्व विद्यालय के कुलपति अलग से की जा रही है। डॉ. सुधीर पाटिल ने किया। परिषद् के महासचिव श्रेणिक अन्नदाते प्रविष्टि भेजने का पता - ने परिषद् के कार्य-कलापों पर विस्तृत प्रकाश डाला तथा मंचडॉ. अनुपम जैन, 'मानद् सचिव' | संचालन सौ. पद्मा चन्द्रकान्त महाजन एवं सौ. मीना गरीबे ने कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, | किया। परिषद के अध्यक्ष श्री सतीश संगई ने धन्यवाद ज्ञापन 584, महात्मा गाँधी मार्ग, तुकोगंज किया। इंदौर - 542001 (म.प्र.) सौ. पद्मा महाजन महाराष्ट्र जैन इतिहास परिषद् 5, गुलमोहर कैंप, अमरावती, महाराष्ट्र - 446202 महाराष्ट्र जैन इतिहास परिषद् का द्वितीय अधिवेशन आरा | जम्बूस्वामी की निर्वाणभूमि पर जम्बस्वामी के (बिहार) निवासी प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन, मानद निदेशक की समान ही एक कथानक और साकार हो उठा श्रीकुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली की अध्यक्षता में भातकुली अतिशय इस युग के अंतिम केवली भगवान जम्बूस्वामी की निर्वाणभूमिक्षेत्र (अमरावती, महाराष्ट्र) में दिनांक 12-13 जनवरी को सम्पन्न | मथुरा चौरासी की पावन भूमि पर भगवान जम्बूस्वामी द्वारा उपदिष्ट हो गया। इसमें जैन इतिहास सम्बन्धी शोधपत्र वाचन, विशिष्ट वैराग्य एवं संयम का पथ उस समय साकार हो उठा, जब 12 मार्च भाषण तथा विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन किये गए। 2002 को पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माता जी ने सैकड़ों श्रद्धालुओं अपने विशिष्ट अध्यक्षीय भाषण में प्रो. राजाराम जैन ने के मध्य अपना केशलोंच सम्पन्न किया। खारवेल-शिलालेख के सन्दर्भ में महाराष्ट्र की प्राचीनता सम्बन्धी ज्ञातव्य है कि पूज्य गणिनी माताजी राजधानी दिल्ली के इण्डिया अनेक ऐतिहासिक सूत्रों का विश्लेषण करते हुए बतलाया कि गेट से भगवान महावीर की जन्मभूमि, कुण्डलपुर (जि. नालंदा बिहार) महावीर युग में सारा दक्षिणापथ जैन संस्कृति का गढ़ था। इसीलिये के लिए मंगल विहार करते हुए मार्ग में फरीदाबाद, वल्लभगढ़, पलवल, मगध के द्वादशवर्षीय भीषण दुष्काल के समय आचार्य भद्रबाहु होडल, कोसीकलां इत्यादि स्थानों पर व्यापक धर्म प्रभावना करते हुए अपने नवदीक्षित शिष्य मगधसम्राट चन्द्रगुप्त को लेकर अपने 11 मार्च को उ.प्र. के एकमात्र सिद्धक्षेत्र-मथुरा चौरासी पहुँची, जहाँ 12000 साधुसंघ के साथ दक्षिणापथ कटवप्र (वर्तमान श्रवण 16 मार्च तक संघ विराजमान रहा। 17 मार्च को मथुरा चौरासी से बेलगोला) पधारे थे तथा वहीं से अपने पट्टशिष्य आचार्य विशाख विहार करके पूज्य माताजी एवं समस्त संघ 20 मार्च को आगरा पहुँच के नेतृत्त्व में समस्त मुनिसंघ को दक्षिणापथ के सीमान्त प्रदेशों में रहा है, जहाँ 6 अप्रैल-ऋषभ जयंती तक संघ का प्रवास रहेगा। पुनः जैनधर्म के प्रचारार्थ भेजा था। वहाँ से विहार करके मई-जून तक संघ प्रयागतीर्थ पर पहुँचेगा। अपने लम्बे भाषण में डॉ. जैन ने जैन संस्कृति के विकास पूज्य गणिनी माताजी के केशलोंच के अवसर पर श्रद्धालुओं में महाराष्ट्र के अपूर्व योगदान की चर्चा करते हुए वहाँ के | को सम्बोधित करते हुए पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी आदिकालीन, मध्यकालीन एवं आधुनिककालीन साहित्य की ने कहा कि लगभग 2500 वर्ष पूर्व जिस प्रकार जम्बूस्वामी ने रात्रिभर शानदार परम्पराओं पर प्रकाश डालते हुए वहाँ की ऐतिहासिक अपनी वैराग्य चर्या से अपनी नवविवाहिता चार पत्रियों के रागभाव को तीर्थभूमियों की चर्चा की तथा महाराष्ट्र के बहुमुखी विकास के परास्त किया था, उसी प्रकार 50 वर्ष पूर्व घर छोड़ते समय गणिनी क्रम में वहाँ के स्वनामधन्य बालचन्द्र हीराचन्द्र दोशी, आचार्य ज्ञानमती माताजी ने भी रातभर अपने उत्कट वैराग्य भावों को प्रकट समन्तभद्र जी महाराज, दानवीर माणिकचन्द्र जे.पी. रावजी साखाराम करके अपनी जन्मदात्री माँ के रागभाव को परास्त करते हए अपने दीक्षा दोशी, ब्र. जीवराज गौतमचन्द्र दोशी, महिलारत्न मगनबाई, पद्मश्री पथ को प्रशस्त किया था। पूज्य चन्दनामती माताजी ने जम्बूस्वामी के सुमतिबाई जी, पं. नाथूराम प्रेमी, प्रो. डॉ. ए.एन. उपाध्ये, कर्मवीर चरणों में बैठकर "श्री जम्बूस्वामी चालीसा" की नूतन रचनाकर क्षेत्र भाऊराव पाटिल, सौ. सरयू ताई दफ्तरी, सौ. सरयू विनोद दोशी को भेंट किया। आदि के प्रगतिशील रचनात्मक योगदानों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मार्मिक चर्चा की। ब्र. कु. स्वाति जैन (संघस्थ) 32 अप्रैल 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524261
Book TitleJinabhashita 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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