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________________ प्राकृतिक चिकित्सा परिचय डॉ. रेखा जैन मानव शरीर एक अनुपम कृति है। इसे पूर्ण स्वस्थ एवं | शरीर स्वयं एक बहुत बड़ा चिकित्सक एवं उपचारक है। ओजपूर्ण रखना हर व्यक्ति, समाज एवं देश का दायित्व है। सरकारी | उसके अंग-प्रत्यंग स्वचलित दवाओं का फार्मास्युटिकल उद्योग घोषणाएँ अनेक बार हो चुकी हैं कि अमुक समय तक देश के | है, जो आवश्यकतानुसार श्रेष्ठतम किस्म की औषधियों का निर्माण प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध हो जाएँगी। लेकिन | करता है। सबसे बड़ी दवा की फैक्टरी है गुर्दे (Kidney), जो वास्तविकता यह है कि अभी निकट भविष्य में दूर-दूर तक ऐसी | पाँच सौ प्रकार की दवाइयाँ निर्माण करते हैं। एक तरफ रक्तस्राव कोई सम्भावना दिखाई नहीं दे रही है। अनेक बीमारियों को जड़ | होने पर रक्त का थक्का बनाने वाली कोएगुलेन्ट दवा फाइब्रिनोजन से समाप्त कर दिये जाने के दावे कई बार हो चुके हैं, किन्तु ऐसे | तथा प्रोथोम्बिन का निर्माण करती है, वहीं रक्त वाहिनियों में रक्त दावों में कोई सच्चाई नहीं है। समय के साथ-साथ चिकित्सा | जमे नहीं, इसके लिए एंटी कोएगुलेन्ट दवा हिपेरिन बनाती है। विज्ञान का भी विकास होता चला गया। विश्व के अनेक भागों में | यह रक्त में उपलब्ध अतिरिक्त ग्लुकोस को ग्लाइकोजन में बदलकर अनेकों पद्धतियाँ विकसित हुईं, जिनमें पश्चिमी ऐलोपैथी को | आपातकाल के लिए जमा रखती है। इसके अतिरिक्त यह एमिनोआजकल सर्वाधिक महत्त्व मिला हुआ है, लेकिन ऐलोपैथी ने | एसिड को अमोनिया तथा अंत में यूरिया के रूप में बदलकर मनुष्य को एक भिन्न इकाई की भाँति देखा है। प्रकृति से अलग, | पेशाब(Urine) के रूप में बाहर करती है, अन्यथा संधिवात गुर्दे यह सबसे बड़ी भूलों में से एक है जो की गई है। मनुष्य प्रकृति | क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। का हिस्सा है। उसका स्वास्थ्य और कुछ नहीं, प्रकृति के साथ | इतना ही नहीं, यकृत (Liver)इमरजेंसी हेतु विटामिन सहज होना है। ऐलोपैथी कुछ क्षेत्रों जैसे सर्जरी, अंग-प्रत्यारोपण | A.B.D तथा K को अपने में सुरक्षित रखता है, कोलेस्ट्राल को एवं संक्रमण इत्यादि में कारगर है, लेकिन शरीर की प्रतिरोधी | नियंत्रित करता है। पेनक्रियाज दर्जनों औषधियों का निर्माण करता क्षमता में ह्रास, तीव्र साइड इफेक्ट्स एवं आफ्टर इफेक्ट्स आदि | है। इसके द्वारा निर्मित एक औषधि इन्सुलिन की कमी हो जाती है ऐलोपैथी के कुछ ऐसे दोष सुस्थापित हो चुके हैं, जिनके फलस्वरूप | तो मधुमेह रोग हो जाता है। दिमाग,प्लीहा, आमाशय, छोटीमनुष्य अपनी प्राचीनतम, श्रेष्ठ, निरापद, शाकाहार एवं अहिंसात्मक, आँत, बड़ी आँत, फेफड़े, हृदय, गुर्दे, थायराइड, पैरा थायराइड, प्राकृतिक चिकित्सा की ओर आशा भरी नजरों से देखने के लिए | पिट्यूटरी, गोनाड्स, एड्रिनल, अस्थि-मज्जा, यानी सभी अंगबाध्य हो गया है। प्रत्यंग हजारों-लाखों किस्म की औषधियों का निर्माण करते हैं। हम किसी व्यक्ति का रोग दूर भी कर दें तो इसका अर्थ | इन औषधियों का निर्माण हमारे आहार-विहार तथा चिन्तन द्वारा यह नहीं कि वह स्वस्थ हो गया है। रोग की अनुपस्थिति स्वास्थ्य होता है। इन फैक्ट्रियों के ये कच्चे माल हैं। यदि कच्चा माल यानि नहीं है, यह एक नकारात्मक परिभाषा है। स्वास्थ्य में कुछ और आहार-विहार, चिन्तन श्रेष्ठतम किस्म का होगा तो उसका उत्पाद सकारात्मक होना चाहिए, क्योंकि स्वास्थ्य एक सकारात्मक अवस्था रस, रक्त, मांस, मेद, मज्जा, अस्थि, वीर्य (रज) तथा ओज भी है। स्वास्थ्य शुद्धचित्तता का भाव है। सम्पूर्ण शरीर बिना बाधा के | श्रेष्ठतम होगा। अपने चर्मोत्कर्ष पर कार्य करता रहे, एक निश्चित लयबद्धता का आहार-विहार तथा चिंतन के तल पर जब हम लगातार अनुभव हो, अस्तित्व के साथ एक निश्चित सकारात्मकता का भाव | गल्ती करते चले जाते हैं, तब उस अवस्था में विजातीय दूषित हो यही स्वास्थ्य है। विकार Foriegn-Matter/Toxic Matter/Morbid Matter जटिल संतुलन - एक छोटा सा व्यक्ति भी उतना ही | शरीर में सहनीय क्षमता से अधिक बनने लगता है। विकार की जटिल है, जितना यह पूरा ब्रह्माण्ड। उसकी जटिलता में कोई | अधिकता के कारण विषनिष्कासन अंगों की क्षमता भी जवाब देने कमी नहीं है और एक लिहाज से ब्रह्माण्ड से भी ज्यादा जटिल हो | लगती है। ऐसी स्थिति में प्रबल जीवनी शक्ति (Vitalजाता है, क्योंकि व्यक्ति का विस्तार बहुत कम है और जटिलता Power)तीव्र ज्वर, रोग, जुकाम, इन्फ्लुएंजा, दस्त, दर्द, उल्टी, ब्रह्माण्ड जितनी विशाल है। एक साधारण से शरीर में सात करोड़ | फोड़ा-फुसी तथा खाँसी आदि के रूप में उस विकार को निकालकर जीव कोष हैं, एक छोटे से मस्तिष्क में कोई तीन अरब स्नायुतंतु | शरीर को स्वच्छ एवं स्वस्थ बनाने का प्रयास करती है। हैं। यह सारा का सारा जो इतनी बड़ी व्यवस्था का जाल है, इस प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में दवाई का कोई स्थान नहीं व्यवस्था में एक संगीत, एक लयबद्धता, प्रफुल्लता, आनंद, | है। दवाएँ रोग दबा देती हैं। एक रोग ठीक होने का भ्रम देकर छन्दोबद्धता एवं हारमोन्स अगर न हों तो शरीररूपी बस्ती अराजक | अनेक रोगों को पैदा करती हैं। हमारा शरीर पंच महाभूतों से बना एवं अव्यवस्थित हो जाएगी, जिसे रोग कहते हैं। | है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा विधि में पंच महाभूतों के विविध -अप्रैल 2002 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524261
Book TitleJinabhashita 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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