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________________ आप नवनिर्माण से परेशान हैं या ध्वंसात्मक विचार से? डॉ.सुरेन्द्र कुमार जैन 'भारती' हो सकता है कुछ तथाकथित समाजसेवियों को मेरे विचार | तथाकथित सुधारकों के कृत्यों को देखकर लगता है किअच्छे नहीं लगें और उनका मन पत्थर मारने का हो जाए, किन्तु तुम्हारी तहज़ीब अपने खंजर से आपही खुदकुशी करेगी। यह हकीकत है कि यदि 1000 वर्षों के समाज-हितैषियों, जिनधर्म जो शाखे नाजुक पै आशियाना बना नापायादार होगा। संवर्धकों के विचार ऐसे ही रहे होते, तो आज न तो भारत में कोई परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सर्वाधिक जैन तीर्थ होते और न जैनायतन, न शास्त्र होते, न शास्त्रकार, न । | प्रशंसित, चर्चित और तथाकथित समाजसुधारकों की आँखों की दिगम्बर गुरु होते न दिगम्बरत्व। जैन समाज में आजकल इतने किरकिरी बने मुनिपुंगव श्री सुधासागरजी महाराज के प्रति एक समाज सुधारक, समाजसेवी, संरक्षणकर्ता , न्यायप्रिय, बेलाग ओर जहाँ बुन्देलखण्ड और राजस्थान में 99.9 प्रतिशत नर-नारी बोलने वाले-वाचाल, श्रावक-समाज-शिरोमणि, विद्वान, संपादक, श्रद्धा से नतमस्तक हैं, उनके विचारों और कार्यों को महान उपकार पत्रकार पैदा हो गये हैं कि लगने लगा है कि जैसे समाज में | की तरह देखते हैं, वहीं इन सुधारकों को उनके कार्यों में खोटसामान्य जनों का अभाव हो गया है और जो भी पैदा हो रहा है वह | ही-खोट नजर आती है। उन्हें पू. मुनिश्री की प्रेरणा से विकसित दिशाबोधक है या समाजसुधारक, चिन्तातुर है, मुनियों का सुधारक हर तीर्थ खोटा नजर आता है । देवगढ़, बजरंगगढ़, सांगानेर, रैवासा और उनका मानना है कि यदि कोई ठीक है तो सिर्फ वही। वे | का वैभव एवं विकास उनकी आँखों में खटकता है। उन्हें तो यह चाहते हैं कि चलो, मगर मेरी ऊँगली पकड़कर, वरना चलो ही | | भी लगता हो, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं कि नारेली के ऊबड़मत। आखिर किसी को क्या हक है कि वे अपने दिमाग से सोचें, | खाबड़ रेतीले प्रदेश में जो ज्ञानोदय तीर्थ बन रहा है, उससे रेत अपने कदमों से चलें? वे तो सिर्फ जलाना चाहते हैं और ज्वलनशील | ढंक गयी है और वह अब हवा के साथ उड़ नहीं पाती। मुझे इन पदार्थों-विचारों का प्रस्फुटन करते रहते हैं। आज एक ओर ऐसे | तथाकथित सुधारकों की वीरता देखकर आश्चर्य होता है कि ये कर्णधार हैं, जो जैनसमाज के सर्वाधिक वरिष्ठ आचार्य, सर्वाधिक | लोग जब बद्रीनाथ में बनते हुए जैन मन्दिर को गिरा दिया गया, दीक्षाप्रदाता, लाखों निरीह पशुओं की मूक भावना को मुखरित | मूर्ति को रास्ते से ही वापिस कर दिया गया और उत्तरांचल के करने वाले संत शिरोमणि श्री विद्यासागरजी महाराज को सर्वोच्च | तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी ने कहा कि "हम वहाँ जैन संत नहीं मानते। अपनी पत्र-पत्रिकाओं में यदि कहीं उनका नामोल्लेख | मन्दिर बनवाकर बद्रीनाथ तीर्थ की भूमि को अपवित्र नहीं करवाना भी करते हैं तो हाल ही में बने आचार्यों के बाद। वे वरिष्ठता में चाहते" तब ये विरासत के मसीहा कहाँ सो गये थे? आज भी ये विश्वास नहीं करते, बल्कि चाहते हैं कि जो उन्हें वरिष्ठ मानें उन्हें | विरासती बरसाती मेंढकों की तरह टर्राने वाले सुधारक गिरनारतीर्थ वे वरिष्ठ माने। ये लेन-देन का सौदा अब आचार्य को तो इष्ट होगा जाकर भगवान नेमिनाथ की निर्वाण भूमि पर निर्वाण चालीसा का नहीं। वे बात भले ही आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज की अर्थ क्यों नहीं समझाते? क्यों नहीं जाते जहाँ भगवान पार्श्वनाथ करें, किन्तु उनकी ही पीढ़ी के संतों को मानने, सम्मान देने में | की मूर्ति पर विधर्मियों ने कब्जा जमा रखा है ? ये लोग कल्याण संकोच होता है। यह कहाँ का न्याय है कि कोई पाँचवीं पीढ़ी को | निकेतन (शिखरजी) पर अवैध रूप से कब्जा करने की योजना तो अपना माने और तीसरी पीढ़ी को अपना मानने से इन्कार करे? | बनाने वाले, सम्मेदशिखर पारसनाथ टोंक पर कब्जा करने की आज स्थिति यह है कि जब भी किसी अन्य आचार्य की जय | योजना बनाने वाले, उसी पर्वत की पवित्र भूमि पर उग्रवादी शिविर बोलनी हो तो सबसे पहले मुँह पर आचार्य श्री विद्यासागर जी कायम करने वालों के खिलाफ विद्रोह/बगावत का झण्डा क्यों महाराज का ही नाम आता है। वे आज मात्र संत नहीं, संत के | नहीं उठाते? क्या मैं पूछ सकता हूँ कि संस्कृति संरक्षण का दम पर्याय हैं। वे मात्र आचार्य नहीं आचार्यों के आदर्श हैं, जैनत्व की | भरने वाले इन लैटरहैडधारी सुधारकों से सरिस्का (नीलकण्ठ) में आस्था हैं, प्रतिष्ठा हैं उन्हें 'इग्नोर' करना धूप में चलते हुए सूरज टीन शेड के नीचे रखी जिनमूर्तियों और खुले में हवा-पानी-धूप के अस्तित्व से इंकार करना है। वे सब कुछ करते हुए भी संतत्व खा रही जिन मूर्तियों के संरक्षण के लिए क्या पहल की है ? मैं से च्युत नहीं होते। उनके पुण्यमय चरित्र की सुगन्ध चन्दन की | जानना चाहता हूँ कि फतेहपुर सीकरी (आगरा) में दीवालों पर सुगन्ध की तरह सबको मोहती है, फिर भी वे आज तथाकथित | चिनी हुई जैन मूर्तियों का सचित्र रहस्य उजागर होने के बाद इन समाजसुधारकों के निशाने पर हैं, आखिर क्यों? मुझे तो इन | तथाकथित पुरातत्त्वप्रेमियों ने अंगड़ाई क्यों नहीं ली? क्या इन -अप्रैल 2002 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524261
Book TitleJinabhashita 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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