________________
आपके पत्र, धन्यवाद : सुझाव शिरोधार्य
We are very much pleased to read
हो रहे हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि यदि किसी समाज को कमजोर JINBHASHIT regularly which are sent to us by
करना है तो उसकी संस्कृति को नष्ट कर दो, उनके ग्रंथों को नष्ट कर our parents from India. We draw immense
दो, उनमें शिक्षा का अभाव कर दो और जब इन चीजों का अभाव satisfaction and peace from its readings.
हो जायेगा तब समाज अपने आप टूट जायेगा और आज के वातावरण You have founded JINBHASHIT and have
में पाश्चात्य शैली हमारी सम्पूर्ण संस्कृति को नष्ट करने पर तुली हुई been editing it with rare insight and excellent
है। आवश्यकता है आज संस्कृति की रक्षा की, जिनवाणी के संरक्षण, skill. Its issues contain rare mosaic of religious,
संवर्द्धन की तथा भारतीजी जैसे समाज संचेतकों की, जिनके अथक social and spiritual concerns as people
प्रयास व अन्वेषणयुक्त लेखनी के माध्यम से हम समाज समन्वयता experienced them across India and world. Its
को बरकरार रखें और सौहार्द का वातावरण बनायें ताकि समाज बिना issues reflect the grass roots concerns of our
किसी बाधा के निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर रहे। श्री भारती जी society with clarity and at a gutsy distance from
की सटीक एवं निडर अभिव्यक्ति की मैं भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूँ। the sloppy spiritual world of press releases and
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
निर्मल कासलीवाल stagemanaged interviews. You cut through the
सांगानेर, जयपुर swathes of many complex social issues in putting
जिनभाषित का दिसम्बर, 2001 का अंक प्राप्त हुआ। इससे common religious principles directly in focus in
पूर्व के सभी अंक नियमित रूप से उपलब्ध हुए। इन अंकों में संकलित a straight forward manner.
विषय सामग्री न केवल सम्पादकत्व की प्रतिभा की प्रतीति कराती We highly appreciate your commandable
है, वरन् संपादक की दूरदर्शिता की ओर भी इंगित करती है। contribution in the presentation of Jain principles
वस्तुतः जिनभाषित के समस्त अंकों के प्राय:-प्रायः सभी in simple words intelligible to a comman man.
सम्पादकीय व लेख आदि को सूक्ष्मता और गहनता से पढ़ने का You never promote religious fanaticism and
सौभाग्य मिला। प्रत्येक अंक का सम्पादकीय ज्ञानवर्द्धक तो है ही, fundamentalism. You identify and celebrate
इसके अतिरिक्त, अंकों में संकलित प्रत्येक लेख आपकी विद्वता का grassroots letter writers. You are running
श्रेष्ठ परिचायक है। इस अंक के प्रथम पृष्ठ पर ही दो आर्यिका माताओं JINBHASHIT with vigour and without making
के फोटो सहित नवीनतम समाचार 'दो समाधियाँ' ने पत्रिका में और any compromise on your time tested principles.
अधिक निखार ला दिया है। - You have set best and highest standards of
दिसम्बर 2001 में "वर्तमान सामाजिक परिस्थिति में journalism that JINBHASHIT deserves.
असमन्वय के कारण और उनका निराकरण' शीर्षक से प्रकाशित डॉ. We wish all the success to you in your
भारती का आलेख अनिबद्ध पढ़ गया। लेख में प्रयुक्त शब्द न केवल present endeavour.
हृदय को स्पर्श करते हैं, अपितु वे अन्तस्तल को झिंझोरकर रख देते With best regards.
हैं। लेखक ने वर्तमान में समाज जिस दिशा की ओर अग्रसर हो रहा Vikas - Veenu Singhai 522-5745
है, उस सामाजिक एवं धार्मिक वातावरण एवं उसके बदलते जा रहे Dalhosie Road, Vancouver, L.B.C. V6T2J1,CANADA
परिवेश पर करारी व सटीक चोट की है। लेख में चर्चित असमन्वय Tel. : 604 221 6363
का प्रत्येक कारण वर्तमान समाज में फैलते जा रहे विष की ओर संकेत
करता हुआ जैसे हमें चेतावनी दे रहा है कि हमारे कदम गलत दिशा जिनभाषित अंक दिसम्बर 2001 का पढ़ा जिसमें सम्मानीय की ओर बढ़ रहे हैं। इनका अध्ययन, चिन्तन व मनन करने के बाद विद्वान लेखक डॉ. श्री सुरेन्द्र कुमार जी जैन 'भारती' का लेख भी हम नहीं सम्हले तो हमारा क्या हश्र होगा, यह तो विधाता ही जाने, 'वर्तमान सामाजिक असमन्वय के कारण और उनका निराकरण' पढ़ा। | किन्तु हमें पतन की गहरी खाई में गिरने से फिर कोई नहीं बचा सकता। वास्तव में यह भारती साहब का सूक्ष्म और गहन अन्वेषण ही है जो व्यक्तिवाद तेजी से पनप रहा है और उसमें भी मैं या अहम की भावना कि समाज में पनपती असमन्वय व दिशाहीन हुई युवा पीढ़ी की तरफ
सामाजिक चेतना को लुप्तप्राय करती जा रही है। एक तरफ तो व्यक्ति हमारा ध्यान आकर्षित करता है। आज आर्थिकवाद, भौतिकतावाद, में अपने कर्म के प्रति लगाव कम हो रहा है तो दूसरी तरफ उसमें संचार साधनों का प्रभाव, धार्मिक शिक्षा का अभाव, दूषित खानपान
श्रेष्ठ व्यक्तिगत गुणों - त्याग, सेवा और समर्पण-का झरना शुष्क आदि चीजें हमारे समाज पर काली छाया की तरह मँडरा रही हैं तथा । होता प्रतीत हो रहा है। आज के संचार साधनों विशेषकर टी.वी. ने हमारी चेतना शक्ति को पंगु बना रही हैं, जिससे हम दायित्वविहीन | तो सामाजिक संबंधों को तार-तार कर दिया है।
- फरवरी 2002 जिनभाषित 5
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org