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________________ The Vikram Vol. XVIII No. 2 & 4, 1974 नारी-जीवन के महावीरकालीन संदर्भो का पर्यावलोकन एवम् समीक्षण डॉ. नेमीचन्द जैन १. भगवान् महावीर के जन्म से पूर्व भारतीय नारी को सामाजिक स्थिति क्या थी, उसके प्रति पुरुष का कैसा दृष्टिकोण और सलूक था, उसे कितनी स्वतन्त्रताएँ और रियायतें प्राप्त थी इसकी सूचना हमें वेदोत्तर और बौद्ध स्रोतों से प्राप्त होती है। इन विवरणों के अध्ययन और विश्लेषण से पता चलता है कि वह निषिद्धियों और वर्जनाओं के दूनिवार जाल में फंसी हुई थी। उसका व्यक्तित्व कुण्ठाग्रस्त था और उसमें एक ध्वंसकारी आक्रोश एवम् प्रतिकार जन्म ले चुका था। पुरुष दूसरी ओर सब तरह से स्वतन्त्र था, वह रंचमात्र भी बाधित नहीं था। नारी को धर्म, संस्कृति, समाज, राजकाज कहीं भी स्वतन्त्रता के पात्र नहीं माना गया था। यही कारण था कि महावीर की समसामयिक नारी सामाजिक अवमाननाओं के लिए एक तीखा संघर्ष कर रही थी। उसकी यह मुद्रा महावीर के समय में किंचित् असामान्य हुई। भारतीय परिवार में उसका वह स्थान नहीं था, जिसकी अपेक्षा की जा सकती थी। इस असम्मान और अप्रतिष्ठा की बड़ी गहरी प्रतिक्रिया हुई। महावीर और बुद्ध के आविर्भाव ने परिस्थिति को प्रामूल बदल दिया। नारी प्रबुद्ध हुई, उठी। उसमें बौद्धिक स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक साहस उत्पन्न हुआ। महावीर और बुद्ध की प्रथम शिष्याओं ने जो प्रश्न किये हैं उनसे नारी के स्वतन्त्रता-बोध की सूचना मिलती है। महावीर के समय में नारी-जीवन को जो सबसे बड़ा और प्रमुख उत्थान मिला वह धार्मिक है। समाज में वह भले ही असम्मानित, तिरस्कृत और बहिष्कृत रही किन्तु महावीर ने उसे उतना ही सम्मान और प्रतिष्ठा दी जितनी पुरुष को पूर्ववर्ती स्थितियों में प्राप्त थी। इसने परिस्थिति को पलट दिया। अभी तक नारी पर धार्मिक और सामाजिक वर्जनाओं का कोड़ा था, किन्तु अब उसने एक सामाजिक समता के नवयुग में प्रवेश किया। महावीर के चतु: संघ में श्रमरण-श्रमणा और श्रावक-श्राविका की पृथक्-पृथक् प्राचार-संहिताएँ हैं, किन्तु उनमें असमानताएँ कम और समानताएँ अधिक हैं; असमानताएँ जो भी हैं, वे अधिकांशतः स्थानिक और सामयिक दबाव के कारण हैं। महावीर के समय के और उनके पूर्ववर्ती तीर्थंकरों के जीवन से सम्बन्धित जो सांख्यिकीय जानकारी प्राप्य है उसमें सर्वाधिक रोचक वे प्रांकड़े हैं जिनमें साधु-साध्वियों की संख्याएँ दी गयी हैं। इनके अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि प्रायः सभी तीर्थकारों के शासनकाल में पुरुष की अपेक्षा नारी ही अधिक धर्मप्रवृत रही। ऐसा क्यों हुआ, इसका समाजशास्त्रीय दृष्टि से गहरा अध्ययन होना चाहिए। महावीर के युग में उनके संघ में १४,००० साधु और ३६,००० साध्वियों थीं; ऋषभनाथ के समय में वेताम्बर साक्ष्य के अनुसार ३,००,००० तथा दिगम्बर साक्ष्य से ३,५०,००० साध्वियां थीं, साधुओं की संख्या कुल ८४,००० थी। पार्श्वनाथ के समय यह आँकड़ा था; साध्वियां ३८,००० (दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों स्रोतों के अनुसार) तथा साधु १६००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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