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Vol. III-1997-2002
संदर्भ सूची
१. "बृहद्पौपालिकपट्टावली" संपा. मुनि जिनविजय, विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघीजैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५२, मुम्बई १९६१ ई., पृष्ठ २४.
तपागच्छ - बृहद्पौषालिक शाखा
श्लोक ९.११
मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ २३-२४.
२. "बृहद्पौपालिकपट्टावली" वही, पृ १३-३५ तथा संपा. मुनि कल्याणविजय, पझवलीपरागसंग्रह, जालोर १९६६ ई, पृष्ठ
"
१७४- १८१ एवं मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ भाग ९ नवीनसंस्करण, संपा. जवन्त कोठारी, मुम्बई १९९७ ई., पृष्ठ ७४-८५.
२. द्रव्य देवेन्द्रसूरिकृत श्राद्धनिकृत्य की प्रशस्ति
३३९
8. C. D. Dalal, A Descriptive Catalogue of Palm Leaf Mss in the Jaina Bhandars at Pattan, G.O. S. No. 76, Baroda 1937, p. 354-56.
५. देखें संदर्भक्रमांक २.
६. मुनि जिनविजय, पूर्वोक, पृष्ठ २३.
७. जीवनचंद साकरचंद झवेरी, संग्राहक और संशोधक- आनन्दकाव्यमहोदधि, भाग ६ श्री देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धारे, ग्रन्थांक ४३, मुम्बई ई. स. १९१८, "प्रस्तावना, " श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई, पृष्ठ १०.
८. हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग २, खंड १, श्री मुक्तिकमल जैनमोहनमाला, ग्रन्थांक ६४, बडोदरा १९६८ ई. स., पृष्ठ ३५६-५७. रत्नाकरसूरि के उपदेश से वि. सं. १३७० / ई. स. १३१४ में स्तम्भतीर्थ में हेमचन्द्रकृत शब्दानुशासन की प्रतिलिपि की गयी।
P. Peterson. A Fifth Report of Operation in Search of Sanskrit Mss in the Bombay Circle, April 1892 - March 1895, p. 110.
१०. Vidhatri Vora, Ed. Catalogue of Gujarati Manuscripts: Muni Shree Punya Vijayji's Collection. L. D. Series No. 71, Ahmedabad 1978 A. D. p. 166.
११. P. Peterson, Ibid, Vol 5 No. 51.
१२. Ibid., Vol 5, No. 396.
१३. वृद्धतपागच्छ / रत्नाकरगच्छ का इसी लेख के साथ स्वतंत्र रूप से विवरण दिया गया है ।
१४. जिनरत्नसूरि की शिष्य परम्परा का इसी लेख के साथ वर्णन किया गया है ।
१५. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविभो भाग १, नवीनसंस्करण, संपा. डॉ. जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८६ ई. स. पृष्ठ ८५ और आगे.
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१६. A. P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss: Muni Shree Punya Vijayji's Collection, Part I, L. D. Series No. 2 Ahmedabad 1963 A. D., No-991, p. 81.
१७. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, मुम्बई १९३१ ई. स., कंडिका ११९.
१८. जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ ९८ - १०१.
१९. अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग १, खंड १ अहमदाबाद १९५३ ई०, पृष्ठ ११६ - ११८.
२०. विजयधर्मसूरि, संग्रा. प्राचीनतीर्थमालासंग्रह, भाग १, भावनगर वि. सं. १९७८, पृष्ठ ५६-५७.
2. James Burges, Antiquities of Kathiawad and Kuchh-, Reprint Varanasi 1971 A. D., pp. 159-61. २२. जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कंडिका ६८१ ६८६.
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