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________________ ३१४ मृगेन्द्रनाथ झा Nirgrantha न मया माया-विनिर्मुक्तः शंके दृष्टः पुरा भवान् । विनाऽऽपदां पदं जातो भूयो भूयो भवार्णवे ॥८॥ सांसारिक सुखों में लीन होने से आप की वाणी में शंका की; जिस कारण बार-बार संसार-समुद्र में जाना होता है। दृष्टोऽथवा तथा भक्तिों वा जाता कदाचन । तवोपरि ममात्यर्थं दुर्भाग्यस्य दुरात्मनः ॥९॥ यह मेरा बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि मैंने न कभी (आप का) दर्शन किया, न ही हृदय से आप की भक्ति की। साम्प्रतं दैवयोगान्मे त्वया सार्धं गुणावहः । योगोऽजनि जनानंत-दुर्लभो भवसागरे ॥१०॥ अभी सद्भाग्य से भवसागर में दुर्लभ मोक्ष मार्ग के बारे में आप की संगति (वाणी) से जानकारी मिली, (अर्थात् आगम के सार को समझा ।) ॥१०॥ दयां कुरु तथा नाथ भवानि न भवे यथा । नोपेक्षन्ते क्षमा क्षीणं यतो मोक्षश्रयाश्रितम् ॥११॥ हे नाथ ! जिस प्रकार क्षमा दुर्बलों की भी उपेक्षा नहीं करती, मोक्ष भी आश्रितों को आश्रय देने में उपेक्षा नहीं करता, उसी प्रकार आप ऐसी करुणा करें जिससे मैं पुन: इस संसार में नहीं होऊँ ॥११॥ निर्बन्धुभ्रष्टभाग्योऽयं निःसरन् योगतः प्रभुः । त्वां विनेति प्रभो प्रीत प्रसीद प्राणिवत्सलः ! ॥१२॥ योग से फिसलते हुए दण्ड के योग्य यह भाग्य बन्धुहीन होकर भ्रष्ट हो गया है; सभी जीवों के प्रति दया रखने वाले हे प्रभो ! तुम्हारे सिवा, सभी प्राणियों को बच्चे के समान देखनेवाला, कौन है ? तुम प्रसन्न होओ ॥१२॥ तावदेव निमज्जन्ति जन्तवोऽस्मिन् भुवाम्बुधौ । यावत्त्वदंहितकासि(न) श्रयंति जिनोत्तम ॥१३॥ जीव तभी तक संसारसागर में डूबता है जब तक आपके चरण का आधार उसे नहीं मिलता ॥१३॥ एकोऽपि यैनमस्कारश्चक्रे नाथ तवांजसा संसार पारावारस्य तेऽपि पारं परं गताः ॥१४॥ हे नाथ ! सहसा भी जिन्होंने एक बार तुम्हारे नमस्कार मन्त्र को पढ़ लिया है, उसने भी संसाररूप समुद्र को पार कर लिया । इत्येवं श्रीक्रमालीढं जन्तुत्राणपरायण । देहि मह्यं शिवे वासं देहि सूरिनतक्रम ॥१५॥ विद्वान् भी जिनके चरण में नत हैं ऐसे सभी ऐश्वर्यों से युक्त, तथा सभी जीवों का रक्षण करने में सक्षम करनेवाले ऐसे जिनेश्वर मझे मोक्ष में वास दें ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522703
Book TitleNirgrantha-3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages396
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Nirgrantha, & India
File Size11 MB
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