SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मृगेन्द्रनाथ झा Nirgrantha अष्ट दल, द्वादश दल, और षोड़श दलवाले कमल पत्र पर वाग्बीज और स्मरबीज मन्त्र को लिखकर काले रंग से घेर दें उसके बाहर किरणयुक्त सूर्य लिखें अब कमल के दूसरे दल पर सरस्वती का बीजाक्षर और ककारादि वर्ण लिखें अब सूर्य जिस दल पर लिखा हो उसको अन्य दलों से अच्छी तरह ढँक दे यह सारस्वत यन्त्र हुआ ||९|| ३०६ "ॐ ऐं श्रीं सौ को जो विधि विधान से ॥१०॥ ओम श्रीमनु सौं ततोऽपि च पुनः क्ली वदौ वाग्वादिन्येतस्मादपि ह्रीं ततोऽपि च सरस्वत्यै नमोऽदः पदम् । अश्रान्तं निजभक्तिशक्तिवशतो यो ध्यायति प्रस्फुटम् - बुद्धिज्ञानविचारसार सहितः स्याद् देव्यसौ साम्प्रतम् ॥१०॥ क्लीं वद वद वाग्वादिनि ह्रीं सरस्वत्यै नमः" उत्साह तथा भक्तिपूर्वक इस मन्त्र ध्यान करता है देवी सम्यक् विचार, बुद्धि एवं ज्ञान के साथ उसको दर्शन देती Jain Education International ( स्त्रग्धरा ) स्मृत्वा यन्त्रं सहस्त्रच्छदकमलमनुध्याय नाभी हदोत्थंश्वेतस्त्रिग्धोनालं हृदि च विकचतां चाप्य" निर्यातमास्यात् । तन्मध्ये चोर्ध्वरूपामभयदवरदां पुस्तकाम्भोजपाणिवाग्देवी त्वन्मुखाच्च स्वमुखमनुगतां चिन्तयेदक्षरालीम् ॥११॥ मन्त्र को स्मरण करके नाभि के मध्य से स्निग्ध श्वेत पंखुरी वाले कमल, जो हृदय के पास आकर खिल गया हो तथा उसके ऊपर अभय वरदान - पुस्तक तथा कमल हाथ में धारण की हुई सम्मुख स्थित वाग्देवी के मुख से निकले हुए वर्णों की पङ्क्ति का ध्यान करें । ( मालिनी) किमिह बहुविकल्पैर्जल्पितैर्यस्य कण्ठे लुठति" विमलवृत्तस्थूल मुक्तावलीयम् । भवति भवति भाषे भव्य भाषा विशेष मधुरमधु समृद्धस्तस्य वाचां विलासः ॥१२॥ ऐसे सारस्वत के विशेष कहने से क्या लाभ जिनके कण्ठ प्रदेश में ही मोती के हार के समान उत्तम पद्य हो जाते हैं तथा मधु की मधुरता के समान भाषा में मधुरता, भव्यता तथा समृद्धि होती हैं । (१३) पा० १-२ म, (१४) पा० १-२ प्रा, (१५) पा० १-२ भवति । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522703
Book TitleNirgrantha-3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages396
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Nirgrantha, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy