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________________ २७४ अशोक कुमार सिंह Nirgrantha क्र.सं. गाथा चरण | संशोधन आधारग्रन्थ गाथा | देही नि.भा. नि.भा. चूर्णा नि.भा. धात्री २३. । १०४ | उ. दुरुत्तग्ग > दुरुतग्गो खिसणा य > खिसणाहिं अवलेहणीया किमिराग कद्दम कुसुंभय हलिद्दा > अवलेहणि किमि कद्दम कुसुंभरागे हलिद्दा य अणुयत्तीह > अणुयत्तीहिं पुच्छति य पडिक्कमणे पुव्वभासा चउत्थम्मि > पुच्छा तिपडिक्कमणे, पुव्वब्भासा चउत्थंपि मंगल्लं > तु मंगलं | मणुस्स > मणुस्से नि.भा. धात्री २४. | १०८ - नि.भा. गौरी ११३ । पू. नि.भा. छाया २६. । १३० । उ. देही उक्त विवरण से स्पष्ट है कि कुछ गाथाओं को, उनमें प्राप्त शब्द-विशेष को समानान्तर गाथाओं के परिप्रेक्ष्य में व्याकरण की दृष्टि से संशोधित कर शुद्ध कर सकते हैं जैसे गाथा सं. १२, ४७, ६३, ८३, ९२, ९८, १०४ और १३० । गाथा सं. ५९, ६९, ७८, ८०, ८९, ११३ और १४१ समानान्तर गाथाओं के पाठों के आलोक में और साथ ही साथ प्राकृत भाषा के व्याकरणानुसार वर्तनी संशोधित कर देने पर छन्द की दृष्टि से शुद्ध हो जाती हैं। गाथा सं. ६३ और ६९ समानान्तर गाथाओं के अनुरूप एक या दो शब्दों का स्थानापन्न समाविष्ट कर देने से छन्द की दृष्टि से निर्दोष हो जाती हैं । गाथा सं. ५४ और ५८ में क्रमश: 'कोले' और 'मासे' को छन्द-शुद्धि की दृष्टि से जोड़ना आवश्यक है। उक्त दोनों शब्द इन गाथाओं को सभी समानान्तर पाठों में उपलब्ध हैं । गाथा सं. १० और ६६ में 'ण' की वृद्धि आवश्यक है । इन शब्दों को समाविष्ट करना विषय-प्रतिपादन को युक्तिसङ्गत बनाने की दृष्टि से भी आवश्यक है। सम्भव है उक्त गाथाओं में 'काले', 'मासे' और 'ण' का अभाव मुद्रण या पाण्डुलिपि-लेखक की भूल हो सकती है। गाथा सं. १०१ और १०८ समानान्तर गाथाओं के आलोक में सम्पूर्ण उत्तरार्द्ध को बदलने पर छन्द की दृष्टि से शुद्ध होती हैं। इस नियुक्ति की गाथाओं से, गाथाओं के समानान्तर पाठालोचन के क्रम में कुछ अन्य उल्लेखनीय तथ्य भी हमारे समक्ष आते हैं । जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है गाथा सं. ८२ के चारों चरण, नि. भा. की दो गाथाओं ३१६९ और ३१७० में प्राप्त होते हैं । इसी प्रकार गाथा सं. ८६ में प्राप्त 'संविग्ग' और 'निद्दओ भविस्सइ' के स्थान पर नि. भा. की गाथा ३१७४ में क्रमशः 'सचित्त' और 'होहिंतिणिधम्मो' प्राप्त होता है । इन दोनों गाथाओं में शब्दों का अन्तर Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.522703
Book TitleNirgrantha-3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages396
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Nirgrantha, & India
File Size11 MB
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