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________________ अशोक कुमार सिंह १३. Nirgrantha चरण के अन्तिम वर्ण के गुरु का ह्रस्व और ह्रस्व का गुरु उच्चारण या गणना करने का विधान है" । ये गाथायें निम्न हैं- गुरु की लघु गणना करने मात्र से छन्द की दृष्टि से शुद्ध होने वाली गाथायें १५, १९, २२, ३४, ४१, ४९, ११८, १२५, १३९ । लघु की गुरु गणना करने मात्र से छन्द की दृष्टि से शुद्ध हो जाने वाली गाथायें ५, ११, २३, २७, २९, ३५, ३६, ३८, ५५, ५७, ९०, ९७, ११०, ११६, १३६, १३७ । इस प्रकार द. नि. (१४१ ) की आधी गाथायें (४४+१०+१६७०) छन्द की दृष्टि से यथास्थिति में ही शुद्ध हैं २७२ 1 अब ७१ गाथायें ऐसी शेष रहती हैं जिनका पाठ छन्द की दृष्टि से न्यूनाधिक रूप में अशुद्ध कहा जा सकता है। इनमें १२ गाथायें ऐसी हैं जिनमें प्राकृत व्याकरण के शब्द अथवा धातु रूपों के नियमानुसार गाथा - विशेष के एक या दो शब्दों पर अनुस्वार की वृद्धि कर देने पर गाथा - लक्षण घटित हो जाता है । ऐसी गाथायें निम्न है प्राकृत शब्द अथवा धातु रूपों के अनुरूप अनुस्वार का ह्रास एवं वृद्धि कर देने मात्र से छन्द की दृष्टि से शुद्ध होने वाली गाथायें (२४) चरणेसु (२४) चरणेसु > चरणेसुं, (३१) दुग्गेसु > दुग्गेसुं, तेणं, (४०) भिक्खूण > भिक्खूणं, (६५) तेण वासासु > वासासुं (८६) मोत्तु मोतुं (७५) मोत्तूण > मोत्तूणं (७६) इयरेसु वत्थेसु वत्थेसुं (१०६) गहण इयरेसुं (८५) गहणं, कहण > (१०२) कहणं (१११) णाउ > णाउं, (१४०) दोसेणु दोसेणं । - द. नि. में ग्यारह गाथायें ऐसी हैं जिनमें प्राकृत व्याकरण के शब्द अथवा धातु रूपों के नियमानुरूप शब्द- विशेष में किसी हस्व मात्रा को दीर्घ कर देने पर और किसी दीर्घ मात्रा को हस्व कर देने पर छन्द लक्षण घटित हो जाता है । ये गाथायें निम्नलिखित हैं। उपयुक्त प्राकृत शब्द- धातु रूपों के अनुरूप स्वर को ह्रस्व या दीर्घ कर देने और स्वर में वृद्धि या ह्रास करने से छन्द को दृष्टि से शुद्ध होने वाली गाथायें (८१) उ> तो, (९७) (१२६) तो तु, तित्थंकर । (७०) अणितस्सा > अणितस्स, आरोवण > आरोवणा, (७१) काईय> काइय, उतो, (१०३ ) णो ण, ( ११४) णाणट्ठी > णाणट्ठि (११८) णाणट्टी > णाणट्ठि (१३०) मणुस्स मणुस्से, (१३१) असंजयस्सा असंजयस्स (१३३) तीत्थंकर इस नियुक्ति में १८ गाथायें ऐसी हैं जिनमें छन्द, लक्षण घटित करने के लिए पादपूरक निपातों तु तो, खु, हि, व, वा च इत्यादि और इन निपातों के विभिन्न प्राकृत रूपों को समाविष्ट करना पडता है। इन गाथाओं की सूची इस प्रकार है- पाद पूरक निपातों की वृद्धि करने से छन्द की दृष्टि से शुद्ध गाथायें २ 'उ', ६ 'हि', ७ 'अ', ८ 'उ', २० 'उ', ४३ 'च', ५३ 'च', ४६ 'च', ५१ 'य', ७३ 'य', ७४ 'उ', ७९ 'य', ८१ 'उ', ८४ 'उ', ८५ 'तु', १२२ 'य', १२९ 'उ', १३८ 'अ' | Jain Education International - - इस प्रकार ४३ (१४ + ११ + १८) गाथाओं में छन्द की दृष्टि से पाठ -शुद्धि के लिए लघु संशोधनों की आवश्यकता है और इस तरह ११३ (७० + ४३) गाथायें छन्द की दृष्टि से शुद्ध हो जाती हैं । अब शेष २६ गाथाओं में गाथा लक्षण (घटित करने के उद्देश्य से) पाठान्तरों का अध्ययन करने हेतु दशाश्रुतस्कन्ध की समानान्तर गाथाओं का सङ्कलन किया गया है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522703
Book TitleNirgrantha-3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages396
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Nirgrantha, & India
File Size11 MB
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