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________________ Vol. II - 1996 वायडगच्छ का इतिहास ४५ 1 I बालभारत नामक कृति की रचना की । मूल महाभारत की भाँति यह भी १८ पर्वों में विभाजित है । ये पर्व एक या अधिक सर्गों में विभाजित हैं। इनकी कुल संख्या ४४ है । सम्पूर्ण ग्रन्थ में ६९५० श्लोक हैं । बालभारत के रचनाकाल के सम्बन्ध में रचनाकार ने कोई उल्लेख नहीं किया है । इस सम्बन्ध में चतुर्विंशतिप्रबन्ध से विशेष जानकारी प्राप्त होती है उसके अनुसार वीसलदेव के सम्पर्क में आने से पूर्व ही इन्होंने बालभारत की रचना की थी। चूँकि वीसलदेव का शासनकाल (वि. सं. १२९४ १३२८ / ई. स. १२३८ - १२७२) निश्चित है और अमरचन्द्रसूरि के गुरु जिनदत्तसूरि की कृति विवेकविलास का रचनाकाल वि. सं. १२७७ / ई. स. १२२१ गया है*४ अतः बालभारत का रचनाकाल वि. सं. १२७७ से वि. सं. १२९४ के बीच माना जा सकता है । पद्मानन्द महाकाव्य ग्रन्थकार की दूसरी प्रसिद्ध कृति है । इसमें प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ का जीवनचरित्र वर्णित है । चूँकि मंत्री पद्म की प्रार्थना पर यह कृति रची गयी थी इसीलिये इसका नाम पद्यानन्दमहाकाव्य रखा गया। इसका दूसरा नाम जिनेन्द्रचरित भी है। इसमें १९ सर्ग और ६३८१ श्लोक है। इसकी कथा का आधार हेमचन्द्र द्वारा रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित माना जाता है । पद्मानन्द महाकाव्य का प्रथम सर्ग प्रस्तावना के रूप में है। दूसरे से छठें सर्ग तक आदिनाथ के पूर्वभवों का विवरण है, सातवें में जन्म, आठवें में बाल्यकाल, यौवन, विवाह, नवें में सन्तानोत्पत्ति, दशम में राज्याभिषेक, ११ वें और १२वें में कैवल्यप्राप्ति, १४वें में समवशरण- देशना आदि, सोलहवें, सत्रहवें और अठारहवें में भरत बाहुबलि और मरीच के वृत्तान्त के साथ अन्त में ऋषभदेव एवं भरत के निर्वाण का वर्णन है और यहीं पर कथा समाप्त हो जाती है । १९वें सर्ग में कवि ने प्रशस्ति के रूप में अपनी विस्तृत गुरु- परम्परा, काव्यरचना का उद्देश्य, मंत्री पद्म की वंशावली आदि का वर्णन किया है । कवि अमरचन्द्रसूरि ने अपनी इस कृति में भी इसके रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया है। चूँकि यह वीसलदेव के शासनकाल में रची गयी है और इसकी वि. सं. १२९७ में लिखी गयी एक प्रति खंभात के शांतिनाथ जैन भंडार में संरक्षित है अतः यह उक्ततिथि के पूर्व ही रचा गया होगा। इस आधार पर पद्मानन्दमहाकाव्य वि. सं. १२९४ से वि. सं. १२९७ के मध्य की कृति मानी जाती है। अमरचन्द्रसूरि ने चतुर्विंशतिजिनेन्द्रसंक्षिप्तचरितानि नामक अपनी कृति में चौबीस तीर्थंकरों का संक्षिप्त जीवनपरिचय प्रस्तुत किया है ६ । इसमें २४ अध्याय और १८०२ श्लोक हैं । इनके द्वारा रचित अन्य कृतियाँ भी हैं जो इस प्रकार है : काव्यकल्पलता, काव्यकल्पलतावृत्ति अपरनाम कविशिक्षा, सुकृतसंकीर्तन के प्रत्येक सर्ग के अंतिम ४ श्लोक, स्यादिशब्दसमुच्चय, काव्यकल्पलतापरिमल छन्दोरत्नावली, अलंकारप्रबोध; कलाकलाप, काव्यकल्पलतामंजरी और सूक्तावली । इनमें से अंतिम चार ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं। प्रथम पाँच प्रकाशित हो चुके हैं तथा बीच के दो ग्रन्थ काव्यलतापरिमल और छन्दोरत्नावली अभी अप्रकाशित हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522702
Book TitleNirgrantha-2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1996
Total Pages326
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Nirgrantha, & India
File Size14 MB
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