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Vol. II - 1996
अकलंकदेव कृत आप्तमीमांसाभाष्य...
सन्दर्भ एवं सहायक ग्रन्थ-सूची: १. आप्तमीमांसाभाष्यम्-अष्टशती, अकलंकदेव, संकलन-डॉ. गोकुल चन्द्र जैन, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी १९८९, २. वही, कारिका २१ भाष्य, ३. वही, कारिका २१ भाष्य, ४. वही, कारिका ५३ भाष्य, ५. प्रमाणवार्तिकम् सटीकम्-धर्मकीर्ति, सम्पादक-द्वारिकादास शास्त्री, बौद्ध भारती, वाराणसी १९६८. ६. आप्तमीमांसाभाष्य, कारिका ७६. ७. वही, कारिका ८०. ८. न्यायकुमुदचन्द्र भाग १, 'प्रस्तावना' पृष्ठ ४६, सम्पादक-पं. महेन्द्रकुमार शास्त्री । श्री सत्गुरु प्रकाशन, दिल्ली १९९१. ९. आप्तमीमांसाभाष्य कारिका ८९. १०. तत्त्वार्थसूत्र १/२९, तत्त्वार्थवार्तिक भाग १ के अन्तर्गत, सम्पादक : महेन्द्रकुमार शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी १९८९. ११. वही १/२६. १२. आप्तमीमांसाभाष्य कारिका १०६. १३. वही, कारिका ३७. १४. वही, कारिका १०६. १५. न्यायविनिश्चयः, सम्पादक-महेन्द्रकुमार शास्त्री, (अकलंकग्रन्थत्रयान्तर्गत) सिंघी ग्रन्थमाला, मुंबई १९३९, कारिका २९९, पृष्ठ
७०.
१६. लघीयस्त्रय (स्वोपज्ञविवृति सहित) अकलंकग्रन्थत्रयान्तर्गत, सिंघी ग्रन्थमाला, मुंबई १९३९. १७. वही, कारिका विवृति ३. १८. न्यायकुमुदचन्द्र १/३ पृष्ठ ६६. १९-अ. सिद्धिविनिश्चय, पृष्ठ ९१ ३०, १९-ब. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक पृ. १७७, २००, ३१९, प्रमेयकमलमार्तण्ड पृ. १०३०, सन्मति तर्क टीका पृ. ५१२, स्याद्वाद
रत्नाकर पृष्ठ ८६, शास्त्रवार्तासमुच्चय-टीका पृष्ठ १५१ ३० पर भी यही कथन मिलता है। परन्तु न्यायावतार के टीकाकार ने इसे निम्न रूप में उद्धृत किया है- “यत्रैवांशे विकल्पं जनयति तत्रैवास्य प्रमाणता इति वचनात् ।" न्यायावतारटीका
पृष्ठ-३१, द्रष्टव्य-न्यायकुमुदचन्द्र भाग-१, पृष्ठ ६६ टिप्पणी संख्या ११. २०. लघीयस्त्रय, कारिका ८ विवृति. २१. प्रमाणवार्तिक २/३, पृष्ठ १००. २२. लघीयस्त्रय, कारिका १२ विवृति. २३. अयुक्तम्-"नाऽर्थप्रत्यक्षमनुमानव्यतिरिक्तं मानम्"-प्रमाणसंग्रह (अकलंकग्रन्थत्रयान्तर्गत) सिंघी ग्रन्थमाला, १९३९ ईस्वी,
कारिका १९, पृष्ठ १०१. २४. लघीयस्त्रय, कारिका २३. २५. प्रमाणवार्तिक २/१२४. २६. लघीयस्त्रय, कारिका २८. २७. न्यायकुमुदचन्द्र भाग-२, पृष्ठ ६००-६०१, टिप्पण ६, श्री सत्गुरु प्रकाशन, दिल्ली, १९९१ ईस्वी. २८. लघीयस्त्रय, कारिका ४१ विवृति. २९. शांकरभाष्य, भामती पृ. ३५२.
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