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________________ १६ नाग वृन्द 역 Jain Education International मम्मट वाचक हरिगुप्त [ तोरमाण के गुरु] कवि देव शिवचन्द्रगणिमहत्तर वटेश्वर क्षमाश्रमण - तत्त्वाचार्य 1 यक्षमहत्तर कृष्णर्षि 1 शिवप्रसाद [ सुपुरुषचरिय के रचनाकार ] कृष्णर्षिगच्छ के आचार्य जयसिंहसूरि ने वि० सं० ९९५ / ई० स० ८५९ में धर्मोपदेशमालाविवरण की रचना की। इसकी प्रशस्ति" में उन्होंने वटेश्वर क्षमाश्रमण को अपना पूर्वज बतलाते हुए अपनी गुरु- परम्परा का परिचय इस प्रकार दिया है - अग्निशर्मा जयसिंहसूर [वि० सं० ९१५ / ई० स० ८५९ में धर्मोपदेशमालाविवरण के रचनाकार ] For Private Nirgrantha वटेश्वर क्षमाश्रमण [आकाशवप्रनगर / अम्बरकोट / अमरकोट में जिनमंदिर के निर्माता ] I तत्त्वाचार्य I दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि [शक सं० ७०० / ई० स० ७७८ में कुवलयमालाकहा के रचनाकार ] उक्त दोनों प्रशस्तियों की गुरु-परम्परा की तालिकाओं के समायोजन से उद्योतनसूरि और जयसिंहसूरि की गुरु- परम्परा की जो संयुक्त तालिका बनती है, वह इस प्रकार है : Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522701
Book TitleNirgrantha-1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1995
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Nirgrantha, & India
File Size10 MB
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