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भारत में जैन धर्म के विकास के मुख्य अवस्थान
प्रो० कृष्णदत्त वाजपेयी
जैन धर्म भारत के प्रमुख धर्मों में एक है । वह श्रमण-परंपरा का वाहक है, जिसकी जड़ें इस देश में आद्य-ऐतिहासिक युग में जम गयी थीं। प्राचीन समय से लेकर आधुनिककाल तक इस धर्म का प्रवाह विविध रूपों में द्रष्टव्य है।
भारतीय संस्कृति के विकास में जैन धर्म का उल्लेखनीय योगदान रहा है। प्रेय और श्रेय की उदात्त भावना को जैन धर्म ने व्यापक रूप से संवर्धित किया। सत्य, अहिंसा, त्याग और सेवा-ये हमारी संस्कृति के प्रमुख चार तत्त्व है। इनके विकास में जैन धर्म ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया। इस धर्म ने साहित्य तथा कलाओं के माध्यम से सांस्कृतिक प्रसार किया। भारतीय इतिहास में जेन धर्म का यह योगदान विशेष महत्व रखता है ।
अनेक भौगोलिक, जनपदीय विभिन्नताओं के होते हुए सांस्कृतिक दृष्टि से भारत देश एक रहा है। एक समन्वित संस्कृति के निर्माण में भारतीय धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं के आचार्यों का प्रभूत योगदान रहा है। जैन आचार्य परंपरा ने अपनी कर्मठता से धर्म-दर्शन, भाषा-साहित्य, कला और लोकजीवन को समृद्ध बनाया।
हमारे मनीषी संस्कृति-निर्माताओं ने देश के विभिन्न भागों में विचरण कर सच्चे जीवन-दर्शन का संदेश फैलाया । धीरे-धीरे भारत और उसके बाहर अनेक संस्कृति-केन्द्रों की स्थापना हुई । इन केन्द्रों पर समय-समय पर विभिन्न मतावलंबी लोग मिलकर विचार-विमर्श करते थे । सांस्कृतिक विकास में इन केन्द्रों का विशेष योगदान था । भारत में मथुरा, कौशांबी, अयोध्या, श्रावस्ती, वाराणसी, राजगृह, विदिशा, उज्जैन, देवगढ़, वलभी, प्रतिष्ठान, कांची, श्रवणवेलगोल आदि अनेक सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित हुए ।
ईसा से कई शताब्दी पूर्व मथुरा में एक बड़े जैन स्तूप का निर्माण हुआ । जिस भूमि पर वह स्तूप बनाया गया वह अब "कंकाली टीला" कहलाता है । इस टीले के एक बड़े भाग की खुदाई पिछली शताब्दी के अंतिम भाग में हुई थी, जिसके फलस्वरूप एक हजार से ऊपर विविध प्रकार की पाषाण मूर्तियां मिली थीं। उस उत्खनन में हिन्दू और बौद्ध-धर्म-संबंधी इनी-गिनी मूर्तियों को छोड़कर शेष सभी मूर्तियाँ जैन धर्म से संबंधित थीं। उनके निर्माण का समय ई० पूर्व प्रथम शती से लेकर लगभग ११०० ई. तक है। कंकाली टोला तथा ब्रज क्षेत्र के अन्य स्थानों में प्राप्त बहुसंख्यक जैन मंदिरों एवं मूर्तियों के अवशेष इस बात के सूचक है
* भू० पू० विभागाध्यक्ष, प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग, सागर विश्वविद्यालय,
सागर।
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