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ब्राह्मण : बुद्ध की दृष्टि में
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ब्राह्मण शिष्यों की बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उत्कृष्टता तथा श्रेष्ठता का ज्ञान होता है। इस धर्म के प्रचार-प्रसार में इन ग्रामों का योगदान अत्यधिक था।
निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि भगवान् बुद्ध ब्राह्मणों के विरोधी नहीं थे। वस्तुतः उन्होंने आध्यात्मिक संपत्तिरहित, केवल जन्म के आधार पर ब्राह्मण कहे जाने वाले लोगों के विरुद्ध सामाजिक और धार्मिक स्तर पर आन्दोलन छेड़ा जिसके फलस्वरूप यह भ्रामक धारणा फैल गई कि भगवान् बुद्ध ब्राह्मण विरोधी हैं । किंतु जब हम उनके उपदिष्ट वचनों की गहराई में जाते हैं तो ज्ञात होता है कि एक ओर तो उन्होंने जातिवाद पर प्रबल प्रहार किया और जन्म के आधार पर मनुष्य की श्रेष्ठता का विरोध किया तथा दूसरी ओर 'शील', 'समाधि' इत्यादि के पालन करने पर अत्यधिक बल देकर प्राचीन काल के ब्राह्मण के आदर्शों को प्रकाशित किया। उन्होंने फिर से ब्राह्मण-पद को आध्यात्मिकता के साथ जोड़ा । अतः वह किसी भी प्रकार से ब्राह्मण-विरोधी नहों कहे जा सकते ।
सन्दर्भ-सूची १. राजीव कुमार-'पालि पिटक साहित्य में वर्णित कुछ प्रमुख ब्राह्मण ग्राम-(शीघ्र प्रकाश्य) प्रो० बी० एन० पुरी अभिनन्दन ग्रंथ-सम्पादक डॉ. आर० अवस्थी,
लखनऊ। २. (पालि त्रिपिटक सम्बन्धी सभी उद्धरण १९५६ से १९६० के मध्य भिक्षु जगदीश
कश्यप, नालन्दा द्वारा देवनागरी में सम्पादित त्रिपिटक से लिये गये है) दीघ निकाय I पृ० ८८, १२०; मज्झिम निकाय I पृ० १३३-३४; सुत्तनिपात ३७ । ३. अंगुत्तर निकाय II पृ० ३७१, सुत्तनिपात ३।७।। ४. सुत्तनिपात ३७ । ५. वही २।७।२०-२२ । ६. दीघनिकाय-अम्बट्ठ सुत्त । ७. वही-कूटदन्त सुत्त ८. वही-लोहिच्च सुत्त। ९. वही-तेविज्ज सुत्त। १०. मज्झिम निकाय-चंकि सुत्त । ११. वही I पृ० ९८; सुत्तनिपात ३९ । १२. दीघनिकाय I पृ० १०४-१०५; अंगुत्तर निकाय II पृ० ५३-५४ । १३. वही ब्रह्मजालसुत्त । १४. सुत्त निपात १।४। १५. धम्मपद २६।१२। १६. वही २६।९।
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