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________________ बिहार की जैन गुफायें अजयकुमार सिंहा* बिहार प्रान्त जैन धर्म एवं संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। जैन कला के नमूने चाहे वह मूर्ति के रूप में हों अथवा गुफा के रूप में इसी प्रान्त में सर्वप्रथम तराशे गये । जैन धर्मावलम्बियो के बीच ऐसी धारणा प्रचलित है कि बिहार प्रदेश की पावन धरा पर तोथंकरों ने कुल छियालिस कल्याणक मनाये जो किसी अन्य प्रदेश की तुलना में सर्वाधिक है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पुरातन काल से ही बिहार प्रदेश जैन धर्म, कला एवं संस्कृति का उद्गम स्थल रहा है। मौर्य काल (लगभग ३२३-१८७ ई० पू०) के प्रथम चरण में भवन निर्माण में लकड़ियों का प्रयोग किया जाता था । पाटलिपुत्र के उत्खनन' ने इस तथ्य को पुष्ट भी किया है परन्तु भारत पर युनानी आक्रमण ने स्थापत्य कला के इतिहास में एक नया अध्याय पाषाण भवनों के निर्माण की शुरूआत करके खोला । निस्सन्देह यह कला सुदूर पश्चिम से भारत में आयी । इसका प्रथम प्रयोग सम्राट अशोक के समय में हुआ। बड़े-बड़े भवन पत्थरों को तराश-तराशकर बनाये गये । इतना ही नहीं, गया जिले के बराबर एवं नागार्जुनी' पहाड़ियों ( पूर्व रेलवे के वेलागंज स्टेशन से १६ किलोमीटर पूर्व में स्थित कुल सात गुफायें अत्यन्त ही कठोर ग्रेनाईट पत्थर को काट-काट कर बनायी गयीं। यह जैन धर्म के लिए अत्यन्त ही गौरव की बात है कि उपर्युक्त गुफायें जैन साधकों के निमित सम्राट अशोक एवं उसके पौत्र दशरथ ने अपार राजकीय मुद्रा व्यय करके बनवायी। मानव निर्मित ये गुफायें जैन-धर्म के लिए ही नहीं वरन् समस्त भारत के लिये अपने आप में अनूठा एवं गुफा-वास्तुकला में सर्वप्रथम प्रयोग है। इस पाषाण स्थापत्य और शिल्प-कला के उन्नत उदाहरण को देखकर दांतों तले अंगुली दबानी पड़ती है। पुरातात्विक उत्खननों से यह स्पष्ट झलकता है कि मौर्य-काल के पहले भवन-निर्माण में लकड़ी का व्यवहार बड़े पैमाने पर होता था। इसका सहज कारण इस प्रदेश में लकड़ी की प्रचुरता हो सकती है। जो भी हो, इस युग में लकड़ी से प्रस्तर का माध्यम लेकर कारीगरों ने कमाल कर दिया। समस्त भारतवर्ष में प्राचीन काल में प्रायः १२०० गुफाएं निर्मित की गई थी। इनमें लगभग दो सौ गुफाएँ जैन धर्म से सम्बन्धित हैं। इन सभी गुफाओं के सर्वेक्षण से यह पता चलता है कि मौर्यकालीन बराबर एवं नागार्जुनी पर्वत की गुफाएं सर्वप्रथम निर्मित हुई है। यह सर्वमान्य तथ्य है । यद्यपि सम्राट अशोक का साम्राज्य विस्तृत था, उसके प्रस्तर अभिलेख भारत की सीमाओं से बाहर भी मिले हैं, पर अन्य स्थानों पर समकालीन गुफाएँ नहीं मिलती .. पुरातत्व निदेशालय, विहार, नया सचिवालय, पटना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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