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________________ तीर्थङ्करों के रूप में बिहार की जैनधर्म को देन प्रो० रामप्रवेश प्रसाद जैनधर्म चौबीस तीर्थङ्करों की परम्परा में विश्वास करता है। ये सभी तीर्थकर इस अवसपिणी काल में उत्पन्न हुए। दो तीर्थहरों के जन्म लेने के बीच की अवधि क्या थी? इसके बारे में ठीक-ठीक कुछ नहीं कहा जा सकता। पर संभवतः इतना निश्चित है कि वह अवधि समान नहीं रही है। ऐसी मान्यता है कि जैनधर्म के तेइसवें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ का जन्म चौबीसवें और अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर से लगभग २५० वर्ष पूर्व हुआ था। जैनधर्म के आदि तीर्थकर ऋषभनाथ का जन्म स्थान कोशल जनपद था और अन्तिम तीर्थकर महावीर का जन्म स्थान वज्जी जनपद में वैशाली। बिहार की धरती पर जन्म ग्रहणकर जैनधर्म का प्रतिपादन करनेवाले महावीर अकेले तीर्थङ्कर नहीं थे, बल्कि इनके पूर्व छः और तीर्थङ्कर बिहार की धरती पर अवतरित हो चुके थे। बिहार की पवित्र धरती पर अवतरित तीर्थङ्करों पर प्रकाश डालने के पूर्व जैनधर्म के सभी तीर्थङ्करों का उनके जन्म-स्थान के साथ उल्लेख कर देना आवश्यक प्रतीत होता है । क्रम संख्या तीर्थङ्करों के नाम जन्म-स्थान . ऋषभनाथ कोशल अजितनाथ अयोध्या संभवनाथ श्रावस्ती अभिनन्दन विनीता सुमतिनाथ विनीता पद्मप्रभ या सुप्रभ कौशाम्बी वाराणसी चन्द्रप्रभ काशी के चन्द्रावती गांव में पुष्पदन्त या सुविधि अंग के काकन्दी गांव में शीतलनाथ मगध के भद्दिलपुर गांव में श्रेयांस सिंहपुर (वाराणसी)... वासुपूज्य चम्पा विमलनाथ काम्पिल्यपुर अनन्त अयोध्या धर्मनाथ रत्नपुर सुपावं १४. +. ला• सि. त्यागी प्रामीण महाविद्यालय, ओगारिघाम (नालन्दा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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