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________________ 256. Vaishali İnstitute Research Eulletin No. 7 प्रस्तुत गाथा में क्रुद्ध एवं डूबते हुए जंगली महिषों का बिम्ब रूपायित हो रहा है। अन्यत्र ९/५, ३५, ९/४१; ९/७६ में भी महिष के बिम्ब मिलते हैं। सिंह दाढाविभिण्णकुम्भा करिमअराण थिरहत्थकड्ढिज्जन्ता। मोत्तागरिभणसोणिअभरेन्तमुहकंवरा रसन्ति मइन्दा ॥ अपने दाढ़ों से कुम्भस्थलों को फोड़ और अपनी मुखरूपी कन्दराओं को मुक्तामिश्रित रस से भर पहाड़ी सिंह समुद्री हाथियों के सूंडों से दृढ़तापूर्वक खींचे जाते हुए विवश होकर गरज रहे हैं। यहाँ गरजते हुए सिंहों का बिम्ब प्रतिबिम्बित हो रहा है । हरिण भिण्णमिलिअं पि भिज्जइ पुणो वि एक्कक्कमावलोअणसुहिअम् । खेलस्थमणण उण्णअतरङ्गहीरन्तकाअरं हरिणउलम् ॥ डूबते हुए पर्वतों के कारण ऊँची-नीची तरंगों द्वारा हरण किए जाने से व्याकुल फिर भी एक दूसरे के अवलोकन से सुखित हरिण एक दूसरे से अलग होकर मिलते हैं और मिलकर फिर अलग हो जाते हैं । यहाँ पर भीत हरिणों का बिम्ब रूपायित हो रहा है । जलीय पशुओं में मकर (५/३७) करिमकर (५/५४) जलगज (५/५७) माह (७/५४, ८८ आदि का बिम्ब प्राप्त होता है। पक्षी हंस- घिरआलपरिणि उत्तं दिसासु घोलन्तकुमुअरमवल्लविअम् । भमइ अलद्धासाअं कमलाअरदसणूसुअं हंसउलम् ॥८ चिरकाल के बाद वापस लौटा, मन्द पवन से प्रेरित कुमुद की रज से धूसरित हंस समूह स्वाद को आशा-आकांक्षा से कमल सरोवरों के दर्शन की उत्कंठा से घूमता है। यहां मानसरोवर से आए स्वाद के लिए उत्कण्ठित हंसों का बिम्ब प्ररूपित हो रहा है। हंसों की पंकि, उनकी मतवाली चाल तथा उनके हृदय में विद्यमान उत्कण्ठा के भाव एक साथ प्रतिबिम्बित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त सेतुबन्ध में पक्षी (६/८२) चामर (१३/६३) एवं गरुड (१४/५८) के बिम्ब उपलब्ध होते हैं। (xi) नियंच सर्प- छिण्णविवइष्णभोआ कण्ठपडिटठविअजीविआगअरोसा । विट्ठीहि वाणणिवहे डहिअग मुअन्ति जीविआई भुअंगा ॥४९ शरीर के कटकर बिखर जाने पर केवल फण मात्र में शेष प्राणों के कारण क्रुद्ध सर्प अपनी-अपनी आंखों की ज्वाला से बाण को जलाते हुए अपने प्राण छोड़ रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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