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जैन वाङ्मय में अनध्याय
221 १८. पतन-किसी बड़े मान्य राजा अथवा राष्ट्रपुरुष का निधन होने पर जब तक उसका दाह संस्कार न हो तब तक स्वाध्याय न करना चाहिए। अथवा जब तक दूसरा अधिकारी सतारूढ़ न हो तब तक शनैः शनैः स्वाध्याय करना चाहिए ।
१९. राजव्युद्ग्रह-समीपस्थ राजाओं में परस्पर युद्ध होने पर जब तक शान्ति न हो जाय, और उसके पश्चात् भी एक दिन रात्रि स्वाध्याय नहीं करें।
२०. औदारिक शरीर-उपाश्रय के भीतर पंचेन्द्रिय जीव का वध हो जाने पर जब तक १०० हाथ तक निर्जीव कलेवर पड़ा हो तो स्वाध्याय नहीं करना चाहिए ।
अस्वध्याय के उपर्युक्त १० कारण औदारिक शरीर सम्बन्धी कहे गए हैं । मूलाचार के इस उद्धरण से इन बातों की पुष्टि होती है
दशाहं द्वादशाहं वा पापवातो यदा भवेत् ।
अनुबन्ध तदा विन्द्याद् राजमृत्यं जनक्षयम् ॥४ अशुभ वायु दस दिन या बारह दिन तक लगातार चले तो उससे सेनादिक का बन्धन, राजा की मृत्यु और मनुष्यों का क्षय होता है, ऐसा समझना चाहिए (अर्थात् ऐसे समय में अध्ययन, चिन्तन में बाधा होती है)।
२१-२८. चार महोत्सव और चार महाप्रतिपदा-आषाढ़ पूर्णिमा, आश्विन-पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा और चैत्र-पूर्णिमा चार महोत्सव है। इन पूर्णिमाओं के पश्चात् आने वाली प्रतिपदा को महाप्रतिपदा कहते हैं । इनमें स्वाध्याय करने का निषेध है।
२९-३२. प्रातः सायं, मध्याह्न और अर्धरात्रि-प्रातः सूर्य उगने से एक घड़ी पहिले तथा एक घड़ी पोछे । सूर्यास्त होने से एक घड़ी पहले तथा एक घड़ी पीछे । मध्याह्न तथा दोपहर में एक घड़ी आगे और एक घड़ी पीछे एवं अर्धरात्रि में भी एक घड़ी आगे तथा एक घड़ी पीछे स्वाध्याय नहीं करना चाहिए ।
___अस्वाध्याय के द्रव्य, क्षेत्र एवं काल का सम्यक् विवेचन "धवलाकार" ने इस प्रकार किया है(क) द्रव्य
यम पट्टह का शब्द सुनने पर, अङ्ग से रक्तस्राव होने पर, अतिचार के होने पर तथा दाताओं के अशुद्धकाय होते हुए भोजन कर लेने पर स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । तिल, मोदक, चिउड़ा, लाई, पुआ आदि चिकना एवं सुगन्धित भोजन के खाने पर तथा दवानल का धुआं होने पर अध्ययन नहीं करना चाहिए । एक योजन के घेरे में सन्यास विधि, महोपवास विधि, आवश्यक क्रिया एवं केशों का लोंच होने पर तथा आचार्य का स्वर्गवास होने पर सात दिन तक अध्ययन का प्रतिबन्ध है। उक्त घटनाओं के एक योजन मात्र में होने पर तीन दिन तक तथा अत्यन्त दूर होने पर एक दिन तक अध्ययन नहीं करना
४. भद्रवाहु संहिता ९।४७ ।
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