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________________ जैन वाङ्मय में अनध्याय प्रो० हृषिकेश तिवारों स्वाध्याय के लिए आगमों में जो समय बताया गया है, उसी समय शास्त्रों का स्वाध्याय या अध्ययन करना चाहिए । अनध्याय काल में स्वाध्याय वर्जित है। जैनागम भी सर्वज्ञाता, देवाधिष्ठित तथा स्वर संयुक्त होने के कारण इनका भी आगमों में अनध्याय काल वर्णित किया गया है । दश आकाश से सम्बन्धित, दश औदारिक शरीर से सम्बन्धित, चार महाप्रतिपदा, चार महाप्रतिपदा की पूर्णिमा और चार सन्ध्या, इस प्रकार बत्तीस अनध्याय माने गये हैं, जिनका वर्गीकरण संक्षिप्त में निम्नप्रकार से किया जा सकता है' आकाश सम्बन्धी दश अनध्याय १. उल्कापात (सारापतन)-यदि महत् तारापतन हुआ है तो एक प्रहर पर्यन्त शास्त्र स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । २. विवाह-जब तक दिशा रक्त वर्ण की हो अर्थात् ऐसी मालूम पड़े कि दिशा में आग सी लगी है, तब भी स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । ३-४. गर्जन और विद्युत-प्रायः ऋतु स्वभाव से होता है। अतः आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र पर्यन्त अनध्याय नहीं माना जाता। ५. निर्यात-विना बादल के आकाश में व्यन्तरादिकृत घोर गर्जना होने पर, या बादलों सहित आकाश में कड़कने पर दो पहर तक अस्वाध्याय काल है। ६. यूपक-शुक्लपक्ष में प्रतिपदा, द्वितीया को संध्या की प्रमा के मिलने को यपक कहा जाता है । इन दिनों प्रहर रात्रि पर्यन्त स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । ७. धूमिका कृष्ण-कार्तिक से लेकर माघ तक का समय मेघों का गर्भमास होता है। इसमें धूम्र वर्ण की सूक्ष्म जल रूप धंध पड़ती है । वह धूमिका कृष्ण कहलाती है। जब तक यह धुंध पड़ती रहे, तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। ८. यक्षादीत-कभी किसी दिशा में विजली चमकने जैसा थोड़े-थोड़े समय पीछे जो प्रकाश होता है वह यक्षादीप्त कहलाता है। अतः आकाश में जब तक यक्षाकार दीखता रहे तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। ९. मिट्टिका श्वेत-शीतकाल में श्वेत वर्ण का सूक्ष्म जल रूप धुंध मिट्टिका कहलाती है । जब तक यह गिरती रहे, तब तक अस्वाध्याय काल है। * पटना। १. स्थानाङ्ग सूत्र, स्थान १० एवं ४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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