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________________ अध्यात्म और विज्ञान प्रो० सागरमल जैन* औपनिषदिक ऋषिगण, बुद्ध और महावीर भारतीय अध्यात्म परम्परा के उन्नायक रहे हैं। उनके आध्यात्मिक चिन्तन ने भारतीय मानस को आत्मतोष प्रदान किया है। किन्तु आज हम विज्ञान के युग में जीवन जी रहे हैं। वैज्ञानिक उपलब्धियां भी आज हमें उद्वेलित कर रही हैं। आज का मनुष्य दो तलों पर जीवन जी रहा है। यदि विज्ञान को नकारता है तो जीवन की सुख-सुविधा और समृद्धि के खोने का खतरा है। दूसरी ओर अध्यात्म को नकारने पर आत्म शान्ति से वंचित होता है। आज आवश्यकता है इन ऋषि महर्षियों द्वारा प्रतिस्थापित आध्यात्मिक मूल्यों और आधुनिक विज्ञान की उपलब्धियों के समन्वय की। निश्चय ही आयोजकों ने आज की संगोष्ठी का विषय "विज्ञान और अध्यात्म" रख कर इसे आयोजन को एक प्रासंगिकता प्रदान की है। सामान्यतया आज विज्ञान और अध्यात्म को परस्पर विरोधी अवधारणाओं के रूप में देखा जाता है। आज जहाँ अध्यात्म को धर्मवाद और पारलौकिकता के साथ जोड़ा जाता है, वहाँ विज्ञान को, भौतिकता और इहलौकिकता के साथ जोड़ा जाता है । आज दोनों में विरोध देखा जाता है । लेकिन यह अवधारणा भ्रान्त ही है। प्राचीन युग में तो विज्ञान और अध्यात्म ये शब्द परस्पर भिन्न अर्थ के बोधक नहीं थे। महावीर ने आचारांग सूत्र में कहा था कि जो आत्मा है वही विज्ञाता है और जो विज्ञाता है वही आत्मा है । यहाँ आत्मज्ञान और विज्ञान एक ही हैं। वस्तुतः विज्ञान शब्द वि + ज्ञान से बना है, 'वि' उपसर्ग विशिष्टता का द्योतक है। विशिष्ट ज्ञान ही विज्ञान है। आज जो विज्ञान शब्द पदार्थ ज्ञान के रूप में रूढ़ हो गया है वह मूलतः विशिष्ट ज्ञान या आत्मज्ञान ही था । आत्म-ज्ञान ही विज्ञान है । पुनः अध्यात्म शब्द भी अधि + आत्म से बना है। 'अधि' उपसर्ग भी विशिष्टता का ही सूचक है । जहाँ आत्म की विशिष्टता है, वही अध्यात्म है । आत्मा ज्ञान स्वरूप हो है। अतः ज्ञान की विशिष्टता हो अध्यात्म है और वही विज्ञान है । फिर भी आज विज्ञान पदार्थ ज्ञान के अर्थ में और अध्यात्म आत्मज्ञान के अर्थ में रूप हो गया है। मेरी दृष्टि में विज्ञान साधनों का ज्ञान है तो अध्यात्म साध्य की अनुभूति । प्रस्तुत निबन्ध में इन्हीं रूढ़ अर्थों में विज्ञान और अध्यात्म शब्द का प्रयोग किया जा रहा है । ___एक हमें बाह्य जगत् से जोड़ता है तो दूसरा हमें अपने से जोड़ता है। दोनों ही 'योग' है। एक हमें जीवन शैली (Life Style) देता है तो दूसरा हमें जीवन साध्य (Goal of life) देता है। आज हमारा दुर्भाग्य यही है कि जो एक दूसरे के पूरक है * निदेशक, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, आई० टी० आई० रोड, वाराणसी-५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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