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तीर्थंकर ऋषभनाथ का जटाजूटयुक्त प्रतिमाङ्कन
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वृषभ अंकित हैं। इस मूर्ति पर कोई लेख नहीं है, किन्तु केश-सज्जा और शरीर-सौष्ठव अंकन कला की दृष्टि से यह मूर्ति राजगृह की उपरोक्त प्रथम ऋषभनाथ की मूर्ति से दो शतक प्राचीन प्रतीत होती है।'
पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) के पाकवीरा नामक स्थान से तीथंकर ऋषभनाथ की पांच मूर्तियों प्राप्त हुई हैं । इन सभी के जटा-जूट विभिन्न प्रकार से कलाकृत हैं तथा स्कन्धों पर लटकती हुई जटाएँ अंकित है । ये सभी मूर्तियां सातवीं से ग्यारहवों शती की हैं।
__उड़ीसा के पोड़ासिंगड़ी नामक स्थान से अनेक जैन मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं। उनमें से कायोत्सर्ग मुद्रा में ऋषभनाथ की मूर्ति कमलपुष्प युक्त पादपीठ पर स्थित है । पादपीठ के ठीक नीचे लाञ्छन वृषभ अंकित है। तीर्थंकर ऋषभनाथ की इस मूर्ति के कन्धों पर लहराती कुछ जटाओंवाला जटाजूट है । यह मूर्ति आठवीं शती की सम्भावित है।
कोरापुर जिला के भैरवसिंगपुर नामक स्थान से मूलनायक ऋषभनाथ का एक चतु. विशति-पट्ट प्राप्त हुआ है, जो जयपुर के जिला संग्रहालय में प्रदर्शित है। योगमुद्रा में शिल्पित इस मूर्ति का जटा-मुकुट बहुत कुशलता से तीन भागों में संवारा गया अंकित है। यह मूर्ति लगभग नौवीं शती की है।
पश्चिम बंगाल के दीनाजपुर जिलान्तर्गत सुरोहोर नामक स्थान से ऋषभनाथ की एक पद्मासन प्रतिमा प्राप्त हुई है। यह मूर्ति एक मन्दिराकार चतुर्विशति पट्टिका में मूलनायक प्रतिमा है। इसके सिर पर सुन्दर जटाजूट शिल्पित है और स्कन्धों पर मोटी-मोटी जटाएँ लहरा रही है । यह मूर्ति शैलीगत विशेषताओं के आधार पर दसवीं शती की मानी गयी है।'
पश्चिम बंगाल के ही घटेश्वर २४-परगना से सुन्दर जटाजूट युक्त एक ऋषभनाथ की मूर्ति प्राप्त हुई है। इसके आसन पर लाञ्छन वृषभ अंकित है। इस मूर्ति के दोनों तरफ चौबीस-चौबीस जिन-मूर्तियां है। इसके परिकर में चॅवरी, गन्धर्व-युगल और नव-ग्रहों का अंकन है। यह मूर्ति दसवीं शती की है ।
पुरुलिया जिला के सीतलपुर और भांगर गांव से भी एक-एक ऋषभनाथ की मूर्ति मिली है। ये दोनों खड्गासन चौबीसी पट्टिका की मूलनायक प्रतिमाएं हैं। एक की स्थिति
१. लेखक का व्यक्तिगत सर्वेक्षण, अक्टूबर १९८८ ।। २. आशुतोष म्यूजियम, कलकत्ता, मूर्ति सं० ३७, ३८, ४०-४१, ४६ । ३. उड़ीसा हिस्टॉरिकल रिसर्च जर्नल-१०-३-१९६१ । ४. जैन जर्नल, जनवरी १९८२, शीर्षक "टू जैन स्कल्प्चर्स फ्रॉम भैरवसिंगपुर"
यु० सुबुधी।
५. हिस्ट्री ऑफ बंगाल, खण्ड १, १९४२ । ६. जैन जर्नल, अप्रैल १९८३, शीर्षक-"दी जैन बैकग्राउण्ड ऑफ २४-परगनाज"
-जी० दे० ।
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