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________________ 182 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 गौतम रास का उद्देश्य मानव-जीवन को असद्प्रवृत्तियों से हटाकर सवृत्तियों की ओर उन्मुख करना है । गौतम का चरित्र आध्यात्मिक-साधना का ज्वलन्त उदाहरण है । प्रत्येक मानव उनके चरित्र से संयम एवं साधना की शिक्षा ग्रहण करके अपने जीवन को सफल बना सकता है। रचना का पर्यवसान निर्वेद में हुआ है। सम्मइजिणचरित-तत्पश्चात् महाकवि रइधू कृत (वि० सं० १४३०-१५२६) सम्मइजिणचरिउ में इनका वर्णन मिलता है। उक्त ग्रन्थ की छठवीं सन्धि के १४वें कडवक में से १७वें कडवक तक इन्द्रभूति गौतम की चारित्रिक विशेषताओं एवं दुर्बलताओं का सुन्दर वर्णन किया गया है। कथावस्तु शौरसेनी ग्रन्थों की भांति ही है किन्तु उसमें गौतम के ग्राम का नाम पोलाशपुर एवं पिता का नाम शाण्डिल्य बतलाया गया है । यही अन्तर है । महावीर रास-इसके पश्चात् राजस्थानी भाषा के महाकवि पदम ने अपनी महावीर रास नामक रचना में इन्द्रभूति गौतम का वर्णन किया है । इस रचना की २१वीं ढाल में ३५वें पद्य से लेकर ६४वे पद्य तक इन्द्रभूति की वैदिक विद्वत्ता एवं उसके प्रति पूर्ण निष्ठा, उनके अहंकार वर्णन के साथ-साथ भगवान् महाबीर के समवशरण में पहुँचने का सुन्दर वर्णन है। तत्पश्चात् दिगम्बर दीक्षा धारण कर उनके प्रथम गणधर होने का उल्लेख है। इस रचना में भी अन्तर इतना ही है कि इन्द्रभूति के ग्राम का नाम ब्रह्मपुर मिलता है । गौतमस्वामी चरित्र-इस रचना के लेखक मंडलाचार्य श्री धर्मचन्द्रजी भट्टारक हैं । इस ग्रन्थ की रचना उन्होंने वि० सं० १७२६ में महाराष्ट्र नामक एक छोटे नगर में श्रीरघुनाथ महाराज के शासन काल में ऋषभदेव के मन्दिर में बैठकर की। ग्रन्थ संस्कृत-भाषा में है तथा उसकी विषय-सामग्री अधिकारों में विभक्त है। पं० लालारामजी शास्त्री ने इसका सर्वप्रथम हिन्दी में अनुवाद किया था। इसका प्रारम्भ मंगलाचरण से हुआ है। ___ इस ग्रन्थ में पांच अधिकार एवं १०४३ श्लोक हैं । प्रथम अधिकार में ११४ श्लोक हैं। जिनमें राजगृह नगरी के ऐश्वर्य एवं शोभा वर्णन के साथ ही साथ राजा श्रेणिक एवं रानी चेलना के सौन्दर्य का वर्णन है । तत्पश्चात् गौतम गणधर के पूर्व भवान्तर सम्बन्धी वर्णन किया गया है। द्वितीय अधिकार में २९८ श्लोक है, जिनमें गौतमस्वामी के पूर्व भवान्तरों सम्बन्धी तीन कुटुम्बी कन्याओं के पूर्व-भव का वर्णन है । तृतीय अधिकार में १०९ श्लोक हैं जिनमें गौतमस्वामी की उत्पत्ति का वर्णन है । इसके अनुसार ब्राह्मण नामक नगर में शाण्डिल्य नामक ब्राह्मण था जिसकी पत्नी का नाम स्थंडिला था। उसके तीन पुत्र थे, जिनके नाम थे, गौतम, गार्य एवं भार्गव । चौथे अधिकार में २५३ श्लोक है, जिसमें भगवान महावीर के गर्भ, जन्म, तप एवं केवलज्ञान नामके चार कल्याणकों का वर्णन किया गया है। केवलज्ञानप्राप्ति के सन्दर्भ में छद्मवेशी इन्द्र का वर्णन आया है। इन्द्र वृद्ध के वेश में गौतम के पास जाते है और निम्न प्रश्न पूछते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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