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________________ 180 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 (१) अर्धमागधो आगम-साहित्य में इन्द्रभूति गौतम के उल्लेख अनेक स्थानों पर उपलब्ध होते हैं किन्तु वे उल्लेख उनके व्यक्तिगत जीवन पर कम और दार्शनिक जीवन पर अधिक प्रकाश डालते है सूत्रकृतांग में वर्णित उदक पेढाल को कथा, उवासगदशांग सूत्र में आनन्द श्रावक के साथ वार्तालाप-प्रसंग तथा उत्तराध्ययन सूत्र में केशी-गौतम संवाद आदि । - इन प्रसंगों में आनन्द श्रावक के वार्तालाप में दर्शन के अतिरिक्त उनके व्यक्तिगत निर्मल चरित्र पर अधिक प्रकाश पड़ता है कि वे चरमकोटि के प्रतिभाशाली होते हुए भी अत्यन्त विनयशील थे। (२) शौरसेनी परम्परा में षट्खण्डागम, तिलोयपणत्ति आदि ग्रन्थों में गौतम-गणघर के उल्लेख मिलते है । धवला और जयघवला टोकाओं में वीरसेन स्वामी ने इन्द्रभूति को निर्मल ज्ञानधारो, ब्राह्मणोकुलोत्पन्न एवं गौतम गोत्रीय कहा है और यह भी बतलाया है कि पांच अस्तिकाय एवं छहद्रव्य सम्बन्धी शंकाओं के समाधान के लिए वे तोथंकर महावीर के सान्निध्य में पहुंचे थे। (३) आचार्य जिनसेन ने तीर्थंकर महावीर के प्रसंग में आदिपुराण के द्वितीय पर्व के ३४ श्लोकों में इन्द्रभूति गौतम की प्रशंसा की है, जिसमें स्तुति के रूप में उनके गुणों की प्रशंसा की गई है। इसी प्रकार अनेक कवियों ने भो गौतम-गणधर का स्मरण किया है लेकिन उनके समग्र जीवन पर प्रकाश डालने वाली रचनाएँ उपलब्ध नहीं होती। १५वीं शताब्दी के प्रारम्भ में गौतम स्वामो पर कुछ लेखकों ने प्रबन्ध-काव्य शैली में उनके जीवन से सम्बन्धित रचनाएँ लिखो हैं। इनमें गौवमरास (विनयप्रभ उपाध्याय वि० सं० १४१२), सम्मईजिणचरिउ (महाकवि रइधू वि० स० १४५७-१५२६) । गौतम चरित्र (संस्कृत, मंडलाचार्य धर्मचन्द्रजी भट्टारक वि० सं० १७२६), महावीररास (महाकवि पद्मकृत १७वीं सदी), गौतमरास (ऋषि रायचन्द्र समय-वि० सं० १८३९) और आधुनिक ग्रन्थों में गणेश मुनि शास्त्रोकृत इन्द्रभूति गौतम प्रमुख है। ये रचनाएँ इन्द्रभूति गौतम के जीवन दर्शन पर विस्तृत प्रकाश डालती हैं। यद्यपि तथ्यों में कहीं-कहीं कुछ परिवर्तन भो दृष्टिगोचर होता है। इसका मूल कारण उन-उन लेखकों के सम्मुख विभिन्न प्रकार की सामग्रियाँ एवं दन्तकथाएं रही होंगी, जिनके शोध-खोज की आवश्यकता है । उपलब्ध इस सामग्री का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है गौतमरास-गौतम राम नामक ग्रन्थ रासा शैली में लिखा गया एक खण्डकाव्य है। इसमें गौतम के चरित्र का वर्णन विस्तृत रूप में किया गया है। सम्भवतः यह प्रथम ग्रन्थ है, जिसमें गौतम का चित्रण स्वतन्त्र रूप में किया गया है। इस ग्रन्थ में गौतम के जीवन की आद्योपान्त घटनाओं का वर्णन किया गया है, जिसमें भाव-तत्व के साथ-साथ काव्यतत्व भी विद्यमान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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