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मध्यकालीन जैन साहित्य का ऐतिहासिक मूल्यांकन
( उदयप्रभसूरि १३वीं सदी), जगडूचरित ( सर्वानन्द १३१२-१५ वि० सं०), भूपालचरित ( जयसिंह सूरि ), कुमारपालप्रतिधिब ( सोमप्रभ), प्रबन्ध-चिन्तामणि (मेरुतुंग १४वीं सदी का प्रारम्भ), पुरातनप्रबन्धसंग्रह, प्रबन्धकोष ( अपरनाम चतुर्विंशतिप्रबन्ध, राजशेखर सूरि वि० सं० १४०५ ), भानुचन्द्र चरित (सिद्धिचन्द्र उपाध्याय, १६वीं सदी), हम्मीरमहाकाव्य ( नयचन्द्रसूरि १६वीं सदी), हरिसौभाग्यकाव्य, विविधतीर्थंकल्प ( अपरनाम कल्पप्रदीप, जिनप्रभसूरि १४वीं सदी) आदि प्रमुख हैं ।
इस प्रकार प्रस्तुत निबन्ध में मध्यकालीन जैन साहित्य में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्व - पूर्ण सामग्री पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया गया किन्तु इस विषय का यह अन्त नहीं है, बल्कि यह ती एक अतिसंक्षिप्त प्रारम्भिक भूमिका मात्र है । वस्तुतः जैन साहित्य में उपलब्ध सामग्री समय-समय पर अनेक कारणों से नष्ट भ्रष्ट होते रहने पर भी इस समय जितनी सामग्री उपलब्ध है, उसका भी यदि निष्पक्ष दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन एवम् मूल्यांकन हो सके तो भारतीय इतिहास के अनेक प्रच्छन्न, अस्पष्ट या अज्ञात तथ्यों तथा विशृंखलित अथवा त्रुटित कड़ियों को जोड़ने में सहायता मिल सकती है ।
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