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समराइच्चकहा में सन्दर्भित प्राचीन बिहार
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विवरण में उसे महोशोलो' कहा है तथा उसे श्रमण संस्कृति का केन्द्र बताया है। वहाँ की खुदाई में अनेक जैन मूर्तियां मिली हैं। कादम्बरी
समराइच्चकहा में प्राकृतिक सौन्दर्य के वर्णन-प्रसंग में कादम्बरी नामक एक अटवी का वर्णन आया है जिसमें आम, चन्दन, कदम्ब एवं इमली के वृक्ष प्रचुर मात्रा में विद्यमान थे । इस भू-भाग की नदी में नावें भी चलती थीं।
हमारी दृष्टि से यह अटवी वर्तमान कोडरमा (गया-हावड़ा रेलमार्ग पर) एवं हजारीबाग के आसपास सम्भावित है क्योंकि इस प्रदेश में आज भी आम, चन्दन, कदम्ब, इमली, खदिर आदि के प्रचुर मात्रा में वृक्ष पाए जाते हैं । अपने सघन वन के लिए भी यह प्रदेश प्रसिद्ध है। यह भी सम्भव है कि “कोडरमा" शब्द स्वयं ही कादम्बरी का परवर्ती परिवर्तित रूप हो।
आचार्य हरिभद्र के ये सन्दर्भ मध्यकालीन इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इन पर आगे भी तुलनात्मक अध्ययन एवं शोध-खोज की आवश्यकता है ।
१. दे० हयूनत्सांग । २. दे० समरा० कथा ६, पृ० ५१०, ५१५, ५२९, ५३६ ।
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