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उन गुरुवर्य के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है कि जिस सचाई, निर्भीकता और निर्लोभता के साथ उन्होंने जैन धर्म और जिन शासन की लौहपुरुष की भाँति सभी प्रकार की विषमताओं और कटुताओं को सहकर उन्होंने रक्षा की, उस दिशा में आज के विषम वातावरण में जबकि लोभरूपी राक्षस अपने लम्बे-लम्बे हाथों को फैलाकर विद्वानों के समक्ष अकड़ कर खड़ा है, पूजा नामवरी का पोस्टर लिए सन्तों के एजेन्ट पीछे-पीछे दौड़ रहे हैं और 'युग की तिमिर छाया दुर्दिन की भाँति संस्कृति के आकाश में चारों ओर आच्छन्न है तथा धन कुबेर सेठियों की बिजलियाँ समय-समय पर अपनी चमक से चकाचौंध उत्पन्न कर रही हैं, तब सत्यार्थ का पक्ष लेने वाला और सचाई को उजागर करने वाला कोई एक भी हो तो उस इमानदारी का रखवाला मैं बना रहूँ, इसी भावना के साथ उनको प्रणाम करता हूँ और यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि सदा धर्मनिष्ठ रहूगा तथा उनकी मशाल को सदा प्रकाशमान रखूँगा ।
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