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________________ हाय ! गुरुवर्य अब नहीं रहे डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री उस दिन ज्यों ही भिलाई नगर में मुझे यह समाचार सुनने को मिला कि पूज्य पण्डित जी का निधन हो गया है, त्यों ही तनमन में सनसनाती हुई विद्युद्धारा आर-पार हो गई। सहसा विश्वास नहीं हुआ कि जो जीवन भर लौहपुरुष की तरह घर-बाहर, देश-समाज, संस्कृत-सभ्यता के बन्धनों से जूझते रहे और अन्तिम समय तक दीर्घकालिक रुग्णता से मृत्यु-शय्या पर संघर्षरत रहे, वे आज हमारे बीच नहीं रहे । यद्यपि मन को बारंबार बहुत समझाया कि जिनकी लेखनी से जैन सन्देह की सम्पादकीय की फाइलें भरी पड़ी हैं, जिनकी मौलिक अनेक रचनाएँ उच्चकोटि के प्रकाशनों से प्रकाशित हैं, जिनके अनुदित महान् ग्रन्थों का हम रात-दिन स्वाध्याय करते हैं और जिनकी वाणी हमारे कानों में गूंजा करती हैं, भला वे कैसे हमारे बीच में नहीं हैं ? किन्तु यह प्रश्न-चिह्न बार-बार मन की धारा को तोड़ देता है और हमें हारकर कहना पड़ता है कि हाय, गुरुवर्य अब नहीं रहे। मेरे सरल और भोले मानस पर जहाँ पूज्य गुरुदेव बड़े वर्णी जी के संस्कारों का प्रभाव रहा है, वहीं पूज्य पण्डित जी से भी बहुत कुछ समझने, सुनने और सीखने को मिला है। यद्यपि स्याद्वाद महाविद्यालय में 'तत्वार्थ राजवार्तिक' का ही अध्ययन उनके पास किया था, किन्तु विद्यालय छोड़कर प्रथम बार विद्धत्परिषद् के अधिवेशन में एक नवागत विद्वान् के रूप में श्रावस्ती में प्राचीन पीढ़ी के सम्माननीय सभी विद्वानों के बीच में उपस्थित होने और निबन्ध पढ़ने का जो सुयोग प्राप्त हुआ, उसका श्रेय भी पूज्य पण्डित जी को था। उन्होंने मेरे निबन्ध का बहुत ध्यान से वाचन किया था। उस समय मैंने ध्यान दिया था कि उन्होंने जहाँ ऐतिहासिक उल्लेखों के पूर्वापर सन्दर्भो को विशेष ध्यान से जाँचा है, वहीं सैद्धान्तिक विवेचन पर पूर्ण ध्यान दिया है। उस समस उनका हिलता हुआ सिर और भाव-भंगिमा यह बता रही थी कि जो कुछ लिखा गया है वह किसी की नकल न होकर विचारपूर्ण कोटि का है। इसलिए मुझे तुरन्त विद्वानों के बीच अपने विचार प्रकट करने का अवसर मिल गया। किन्तु उनके इस निर्णय से उनके भीतर छुपी हुई समालोचक शक्ति की गम्भीरता को मैं भली-भाँति समझ गया था। क्योंकि मैं संकोची स्वभाव का कभी विद्वानों के बीच में बोला नहीं था और इसलिए भाषण देने या निबन्ध पढ़ने के मूड में नहीं था पूज्य बड़े पण्डित वंशीघर जी, पं० फूलचन्द जी, पं० जीवन्धर जी आदि अनेक विद्वान् उस सभा में उपस्थित थे। सभी विद्वान् उच्च कोटि के थे और उनके विचार भी वैसे ही थे। मैं उन सबको एक साथ पहली बार सुनकर और अधिक से अधिक सुनने का • २४३, शिक्षक कालोनी, नीमच (म० प्र०)-४५८४४१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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