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________________ आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत धात्वादेशों में बज्जिका के क्रिया-रूप does, कणिआरिअं (काणा क्षिद्धृष्टम्, २०१४), कन्हुआइत, कन्हुआऍल; काणच्छी (काणाक्षि, काणाक्षिष्टम् २।१४ ), कनछिआ कऽ देखइतहऍ कनछिआऍल खणुस्रा ( मनोदु:खम्, २६८ ) खुनुसाऍल, खुनुस खडिअं ( मग्नम्, २२७९), टाटी खरडकऽ नया बाह्रदेतइ खलअं ( स्खलि तम्, २०७१) खलओले, खलज्बइत, पेटखलओलेहइ खिज्जिअं ( उपालम्भ:, २०७४ ) खिजइत, खीझल, खीझ खुट्ट (त्रुटितम्, २०७४) खोटइत, बूट के साग खोंटइतहइ, नओह (नख ) इतह; गलथलिओ (क्षिप्तः, २२८७) पानी में खरूहन गलथलाऍल हइ, गुमिलं ( मूढम् २(१०२) गुम्महो गेलइ; गुम्मइओ (विघटितः, १११०३) हम्मर सब चीज गुम्म होगेल; गोबर ( गोमय, २,९६) छोटी (टोकड़ी) गोबराऍल हइ; गुदड़ालिअं ( पिण्डीकृतम्, २ ९२), गुड़िआऍल घुनघुणिओ ( कर्णोपकणिका, २।११०) घुनघुनाइत; चक्कलं (चक्रल, वर्तुल, विशाल, ३।२०) चकला-बेलना, चकला पर रोटी बेलइत हइ, जांता-चकड़ी चकराऍल, चाकर, चकरइट; चासो (हलस्फाटित भूमिरेखा, ३३१) चास, खेत अभी चासल न हइ, खेत कऍ चास भेल हइ; जड़िअं ( खचितम् ३१४१ ) जड़ल, नग-जड़ल; झख (तुष्टः, ३।५३) झखइत, झख Areas ओकरा इहाँ आवे के होतइ; झंपणी ( पक्ष्म: ३।५४) आंख झपकत हइ, झपकी; झलुसिअं ( दग्धम्, ६।५६ ) झुलुस गेलइ, झुलस गया (हिन्दी); झामिअं ( दग्धम्, ३.५६), झम्मा, ईंटा पाक कझमा गेलइ हुनकर बात सुनकर हम झमा गेलो; टिक्क ( तिलकम्, ४३) माङ् टिकइत हइ णक्को (घ्राणम् ४।४६) नकिआइत, नाक; णत्था ( नासारज्जुः, ४११७) बऍल नाथल हइ, नथाऍल, नाथ, णिक्खुरिअ (अद्धृढम् ४/४० ) निखोरइत, निखुराह, निखोरक देख लेही; णिफ्फरिसो (निर्दयः, निःस्पर्शः ४ ३७ ) हम एइ झंझट से निफरगली; तग्गं (सूत्रम्, ५१) धुनिया सीरक तगइत हइ । तिक्खालिअं ( तीक्ष्णीकृतम्, ५११३) तीख, तेखारल, तेखार as पूछ लेही; थग्गो (गाध:, ५१२४), हुनका पेट के थाह न लगतो, नदी घाट पर थाह हइ, थाह कऽ चले के चाही, थमिअं का अर्थ स्तस्मितम् होता है: थरहरिअं ( कम्पितम् ५।२७), थरथराइत, थरथराऍल, थरथरी; थानोम् (गंभीर जलम् ५।२७) पानी के थाह लागगेल, नहीं डूबने लायक पानी को थाह और डूबने लायक को अथाह कहते हैं; थिमिअं (स्थिरम्, स्तिमितम्, ५।२७) थमल, थमत: पडिअं ( पतितम् विघटितम् ६।१२ ) पड़ल, खसल- पड़ल, पाड़ल, अण्डा पारइत हई, पण्हओ (प्रस्तुतः, ६ २) स्तनधारः, गाइ पन्हाइत हऍ, भइँसी पा गेलइ परिहणं (परिधानम्, ६।२१) पहिरन ( वर्णव्यत्यय), पेन्हइत; पेल्लिअं ( प्रेरितम्, पीडितम्, ६।५७) ऊँख पेरइत हइ; फंसणं (संयुक्त, ६।८६) फंसनाइ, फंसइत, फॉस फॅसा लेलकइ; फोफा (भीषयितुं शब्द:, ६१८६), फोफिआइत' फुंफकार; वप्फाउलं (वाष्पाकुलम्, अतिशयोष्णम्, ६।९२) धान बफाऍल हइ, बफाइत, बाफल, बोहरी ( संमार्जनी, ६।९७), बुहारल, झाड़लबहारल, बहारन, बहारइत, हिन्दी में बुहारना, भुक्कणो ( बुक्कनः, श्वा, ६।११०) आधुनिक अर्थ कुत्ता (श्वा) नहीं; उसकी बोली हैं । भुकइत, बोल-भूक, भुक्खा (बुभुक्षा, क्षुन्, ६।१०६), भुखाऍल लुंकणी (लयनम् ७१२४), लुकाछिपी, चोरिआ नुकिआ, नुकाऍल ( लीन); विच्छि ( विचितम् ७ ९१ ) बिछइत, बीछल, बीछक सराहो ( श्लाधः, दपोद्धुरः, ८1५) सराहल बहुरिआ डोमघर गेल, सराहइत; सिब्वी ( सूची, ८।२९), सूई, सिआइत, सीअल - फाडल, Jain Education International 107 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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