________________
आज वे हमारे बीच में नहीं हैं
पं० फूलचन्द्र शास्त्री दि० २०-२१ के दिन नव भारत टाइम्स में मुद्रित हुए समाचार से यह जानकर कि समाज मान्य पण्डित कैलाश चन्द जी स्वर्गवासी हो गये हैं, पूरे हस्तिनापुर क्षेत्र के रह वासी स्तब्ध रह गये।
___ यह शिकायत तो हमेशा से सुनी जाती रही है कि धीरे-धीरे शास्त्रीय पण्डितों का अभाव होता जा रहा है। पर इस समस्या को कैसे सुलझाया जाय, यह बात अभी तक निश्चित नहीं हो पाई है । इसका हल निकालना भी कठिन है ।
बात यह है कि स्वराज्य के बाद एक ओर प्रत्येक व्यक्ति का लौकिक जीवन-स्तर बढ़ने लगा है और दूसरी ओर मंहगाई ने चरम सीमा गाँठ ली है। समाज चाहे भी तो यह समस्या सुलझ नहीं सकती।
जो वर्तमान त्यागी-मुनि हैं वे पढ़ने में विश्वास नहीं करते। जब वैसे ही उनकी आहार-पानी आदि की अनुकूलताएँ बन जाती है तो वे पढ़ें क्यों। उन्हें ठण्ड से बचने के लिए हीटर चाहिये, गर्मी के ताप से बचने के लिए पंखा चाहिए, एक स्थान से दूसरे स्थान तक उनके परिग्रह को ढोने के लिए मोटर गाड़ी चाहिए, उनकी सेवा टहल आदि के लिए आदमी चाहिये, ड्राइवर चाहिए। समाज इस सब का प्रबन्ध उनके बिना लिखे पढ़े ही करती है। वे फिर पढ़े लिखे क्यों।
मार्ग के विरुद्ध समाज की इस विषय में रुचि का कारण है उसकी चाह । समाज में कुछ कुटुम्ब ऐसे हैं जो ताबीज आदि में विश्वास करते हैं। देवी-देवता में विश्वास करते हैं । त्यागी-मुनि भी ऐसे कुटुम्बों की इस कमजोरी को जानते हैं। इसलिए वे अपने त्यागी-मुनि के जीवन की लौकिक सुख रूप बनाये रखने के लिए इस मार्ग को अपनाते हैं। धर्मशास्त्र तो मूक है। हस्तक्षेप करे तो कैसे करे।
त्यागी-मुनि जानते हैं कि ऐसा करने से हम त्यागी-मुनि भी बने रह सकते हैं और लीकिक इच्छायें भी पूरी कर सकते हैं। समाज में ऐसा एक वर्ग या सम्प्रदाय है जो इसका साधक है । आगम की उसे चिन्ता नहीं, चिन्ता है अपने सुख-सुविधा की। इसलिए वह वर्ग ऐसे त्यागी-मुनियों को पसन्द करना है जो इस वर्ग की ऐसी इच्छा की पूर्ति में सहायक होते हैं । इच्छा की पूर्ति होना अन्य बात है। इच्छा की मूर्ति हो या न हो। यह एक दुकान है जो दोनों के सहयोग से चलती है ।
यह वर्तमान स्थिति है, इसलिए हम जानते हैं कि जो गया, वह गया। इसकी पूर्ति होना असम्भव है। मान्य पण्डितजी गये, उनकी पूर्ति न हम कर सकते हैं और न कोई
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org