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________________ 66 Vaishali Institute Research Bulletin No. 6 अलग-अलग अपभ्रंश भाषाएं बनीं, जिनसे आधुनिक भाषाओं का धीरे-धीरे प्रादुर्भाव हो गया । प्राकृत अभिलेखों का सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक महत्त्व प्राकृत भाषा का अभिलेखीय साहित्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्राप्त अभिलेखों भाषा, इतिहास, भूगोल और साहित्य की दृष्टि से संस्कृत भाषा के अभिलेखों की अपेक्षा कई बातों में विशिष्ट है । उपलब्ध अभिलेखीय साहित्य में ( प्राकृत ) भाषा के अभिलेख ही सबसे अधिक प्राचीन है । प्रारम्भ से ई० सन् की चौथी शती तक के समस्त अभिलेख प्रायः प्राकृत में ही है। इन अभिलेखों में किसी व्यक्ति विशेष का केवल यशोशान ही निबद्ध नहीं है बल्कि मानवता के पोषक सिद्धांत अंकित हैं। हमारा विश्वास है कि इस प्रकार असाम्प्रदायिक और विश्वसनीय साहित्य संसार में बहुत कम मिलेगा। प्राकृत अभिलेखों में साहित्य के अनेक विधाओं के बीज वर्तमान हैं। । दूसरी बात यह है कि साहित्य की व्यवस्थित अध्ययन की परम्परा सबसे अधिक शिलालेखों में सुरक्षित रहती है। अतः अभिलेखीय साहित्य का किसी भी प्रकार संशोधन और परिवर्तन सम्भव नहीं है । शिलालेखों पर उत्कीर्ण साहित्य समय के शाश्वत प्रवाह में तदवस्थ रहता है। यही कारण है कि शिलालेखों का अध्ययन किसी भी भाषा और साहित्य की परम्परा के नितान्त आवश्यक होता है । प्राकृत में सबसे प्राचीन अभिलेख प्राकृत-मौर्यकालीन है, जिसका सर्वेक्षण हमने अपने शोध-प्रबन्ध में किया है। इसके पश्चात् प्रियदर्शी सम्राट अशोक के अभिलेख ई० पू० २६९ में राज्याभिषेक के बारह वर्ष पश्चात् गिरनार, कालसी, धौली, जौगढ़ एवं मानसेहरा आदि स्थानों पर उत्कीर्ण कराये गये हैं । इन शिलालेखों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनके द्वारा सम्राट अशोक ने प्रजा में "अहिंसा" के प्रति आस्था जागृत करने का प्रयास किया है। समाज में सदाचार, सुव्यवस्था एवं निश्छल प्रेम उत्पन्न करने का प्रयास भी इन अभिलेखों में पाया जाता है। त्याग, आत्मसंयम एवं राग-रहित प्रवृत्ति को जागृत करने के लिए क्षमादेश प्रचारित किये गये हैं। अशोक ने कलिंग के अभिलेखों में कहा हैं--"मेरी प्रजा मेरे बच्चों के समान है और मैं चाहता हूँ कि सबको इस लोक तथा परलोक में सुख एवं शान्ति मिले।" अशोक के अभिलेखों से उपलब्ध होने वाले तथ्य निम्न प्रकार हैं :-- १. मौर्य साम्राज्य पश्चिमी भाग में अफगानिस्तान से उड़ीसा तक तथा हिमालय की तराई से नेपाल की तराई का स्तम्भ लेख सम्मनदेई तथा कालसी के लेख मद्रास प्रान्त के एरगुड़ी तक व्याप्त था क्योंकि शिलालेखों की सीमा क्षेत्र उपर्युक्त ही है। अशोक के द्वितीय तथा तेरहवें अभिलेख में राजाओं की जो नामावली आयी है, उससे भी उक्त तथ्य की पुष्टि होती है। २. मौर्यकालीन शासन व्यवस्था का चिरज्ञान भी अशोक के अभिलेखों से प्राप्त किया जा सकता है । पाँचवें धर्म-स्तम्भ लेख में धर्म माहात्म्य नये कर्मचारी की नियुक्ति का वर्णन है। तीसरे में रज्जुक प्रादेशिक तथा युक्त नामक पदाधिकारियों को प्रजाहित के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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