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________________ श्रमणधर्म और समाज 157 कट जाता है । (२) व्यावहारिक धरातल पर यह औपचारिकताओं के आडंबर में लुप्तप्राय हो जाती है, इस तरह कालक्रम से बौद्धिक सूक्ष्मताओं और औपचारिक आडंबरों के पिरामिड में धर्म के मौलिक और उपादेय तत्त्वों का मानों दफन हो जाता है। जैसा कि मैंने अपने निबंध में संकेत किया है, भगवान् बुद्ध और भगवान् महावीर दोनों अपने समय की रूढिबद्ध औपचारिकताओं के उच्छेदक थे। इन दोनों ने धर्म को नैतिकता के ठोस धरातल पर प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया। किन्तु, कालक्रम से इनके द्वारा प्रवर्तित और नवीकृत धर्माचार भी औपचारिकताओं के जाल में फंस गये और तार्किक सूक्ष्मताओं के घने जगल में लुप्त हो गये। __ हर नयी व्यवस्था इन दोनों ध्र वों पर बिखर जाती है। इसे समेटने के लिए-इसे समयानुकल और स्वस्थ रूप देने के लिए विशेष प्रकार के नेतृत्व की आवश्यकता होती है। आगे चलकर संतों की व्यवस्था का भी यही हाल हुआ । कबीरदास जी ने कहा- "जप माला छापा तिलक सरै न एको काम" और "कर का मनका छाँड़ि के मन का मनका फेर"। किन्तु आज का कबीर पंथ मनका के आडंबर से मुक्त नहीं है । कबीरदास ने जाति-पाति का खंडन किया। किन्तु कबीर पंथी साधुओं की दो पाँते लगती हैं :-तागधारी (जनेऊ वाले ब्राह्मण आदि) और कंठीधारी (शूद्र)। ___ आधुनिक युग में गांधी की व्यवस्था भी उक्त दोनों ध्र वों पर बिखर चुकी है। गांधी-आचार संहिता में सूत कातने को एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया । तत्कालीन परिस्थिति में इसकी उपादेयता निर्विवाद थी। बाद में इसे बहुधा औपचारिकता के रूप में ही ढोया जाने लगा। दूसरी ओर गांधीवाद की बौद्धिक मीमांसा से न मालूम कितने पुस्तकालय समृद्ध हो गये। किन्तु उसकी व्यावहारिक उपादेयता प्रायः लुप्त होती जा रही है। __ अत: इस दिशा में सतर्क रहने की आवश्यकता है कि कोई भी व्यवस्था उक्त दोनों ध्र वों पर बिखरने न पावे और देश, काल, पात्र के अनुसार उसे उपादेय बनाकर रखा जाय । प्रश्न (२) आपने ऐसा कहा है कि गृहस्थ के लिए विरोधी हिंसा परिस्थिति विशेष में विधेय है। किन्तु, ऐसी भी स्थिति हो सकती है जब विरोधी हिंसाओं में भी परस्पर विरोध हो। जैसे किसी मंदिर में हरिजन प्रवेश करना चाहते हैं और पंडे उन्हें रोकते हैं ! दोनों हिंसा पर उतर जाते हैं। दोनों के द्वारा की गयी हिंसा विरोधी हिंसा कहलायगी। इनमें किसे विधेय और किसे अविधेय कहा जायगा ? डा० दयानन्द भार्गव, अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, जोधपुर विश्वविद्यालय, जोधपुर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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