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Vaishali Institute Research Bulletin No. 4
१५वीं सदी हिन्दी के विकास एवं प्रचार का युग था। रासा - साहित्य के साथ-साथ सन्त कबीर, सूर एवं जायसी, हिन्दी के क्षेत्र में धार्मिक साहित्य का प्रणयन कर चुके थे । उसने जन-मानस पर अमिट प्रभाव छोड़ा था । जैन कवियों का भी ध्यान इस ओर गया और उन्होंने भी युग की माँग को ध्यान में रखकर बाहुबली चरित का लोक प्रचलित हिन्दी में अकन किया ।
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इस दिशा में कवि कुमुदचन्द्र कृत "बाहुबली छन्द "" नाम की आदिकालीन हिन्दी रचना महत्त्वपूर्ण है । उसमें परम्परागत कथानक को छन्द-शैली में निबद्ध किया गया है । इसकी कुल पद्य संख्या २११ है । इसके आदि एवं अन्त के पद्य निम्न प्रकार हैं
...भरत महीपति कृत मही रक्षण बाहूबल बलवंत विचक्षण ।
तेह भनोकरसुं नवछंद सांभलता भणतां आनंद ||३|| .....करणा केतकी कमरख केली नव-नारंगी नागर बेली ।
अगर नगर तरु तंदुक ताला सरल सुपारी तरल तमाला ॥ ४३ ॥ ...संसार सारित्यागं गतं विबुद्ध वृंद वंदित चरणं ।
कहे कुमुदचंद्र भुजबल जयो सकल संघ मंगल करण || २११ ॥ इस ग्रन्थ का रचनाकाल वि० सं० १४६७ है । यह ग्रन्थ अद्यावधि अप्रकाशित है ।
भट्टारक सकलकीति कृत वृषभदेव चरित्र ( आदिपुराण) संस्कृत का पौराणिक काव्य है, जिसमें जिनसेन की परम्परा के बाहुबली कथानक का चित्रण किया गया है । कलकीति का समय विक्रम की १६वीं सदी का प्रारम्भ माना गया है ।
"कार्कलद गोम्मटेश्वर चरिते " सांगत्यछन्द में लिखित कन्नड़ भाषा का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है | इसमें १७ सन्धियाँ ( प्रकरण) एवं २२२५ पद्य हैं । इस ग्रन्थ में गोम्मटेश्वर अथवा बाहुबली का जीवनचरित तथा सन् १४३२ ई० में कारकल राजा वीर पाण्ड्य द्वारा प्रतिष्ठापित बाहुबली - प्रतिमा का इतिवृत्त अंकित है । ऐतिहासिक दृष्टि से यह ग्रन्थ बड़ा महत्वपूर्ण है ।
प्रस्तुत रचना के लेखक कवि चन्द्रम हैं । इनका समय १६वीं सदी के लगभग माना
गया है ।
पुण्यकुशलगणि ( रचनाकाल वि० सं० १६४१ - १६६९ ) विरचित भरतबाहुबली महाकाव्यम् संस्कृत भाषा में लिखित बाहुबली सम्बन्धी एक अलंकृत रचना है, जिसके १८ सर्गों के ५३५ विविध-शैली के श्लोकों में बाहुबली के जीवन का मार्मिक चित्रण किया गया है ।
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दे० राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की सूची
दे० जै० सि० भा०, ५।२।९२ १०० ।
जैन विश्वभारती, लाडनूं से प्रकाशित ।
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- भाग ५, पृ० १०६९ ।
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