SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 80 Vaishali Institute Research Bulletin No. 4 कि अधिक धन उपार्जित एवं संग्रहीत करना सर्वव्यापी भाव था । इस तरह की विषमता एवं धनार्जन की महत्त्वाकांक्षा के परिणामस्वरूप चोर और चोरी का अस्तित्व भी था । चोर सम्भवतः निजी संपत्ति की सुरक्षा से संबंधित नियम-कानून के कारण प्रायः चोरी के माल को छिपाकर रखते थे। ऋग्वेद में चर्चा है कि धनवान् लोग अपनी निजी संपत्ति के अर्जन तथा उसकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त प्रबंध करते थे । कुछ पहरेदारों या रखवालों की नियुक्ति खेतों तथा घरों पर लगातार पहरा देने के लिए हुआ करती थी । ७१ कंजूस तथा संपत्ति-संग्रह की संपत्ति की खोज में किया | 33 यह तो की पुष्टि इस बात लोग संपत्ति-वृद्धि तथा कोष-सुरक्षा के लिए दत्तचित थे । २ धनार्जन इसी प्रवृत्ति के कारण, किसी व्यक्ति ने बिना किसी को साथ लिये प्रस्थान कर दिया था और विभिन्न प्रकार से पर्याप्त धन को एकत्र भी निश्चित ही आर्थिक साहसिक्ता के अस्तित्व का संकेत है । इस मनोवृत्ति से भी होती है कि सभा में जोर से बोलना महत्त्वपूर्ण माना जाता था । ७४ इसके अतिरिक्त, यह कथन कि संपत्ति किसी कंजूस या कृपण के पास नहीं जाती ", यह संकेत देता है कि उस समय भी यह स्पष्ट था कि उत्पादन कार्यों में बिना अच्छी पूँजी लगाये अच्छा मुनाफा संभव नहीं । उससे पूँजी, श्रम तथा उत्पादन से संबंधित कई निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं । पर्याप्त भूमि तथा उपजाऊ कृषि क्षेत्र की इच्छा ने तो निश्चित ही, अचल संपत्ति के अर्जन की प्रवृत्ति को बल प्रदान किया । यह कथन कि धार्मिक व्यक्ति अपने समूह, घर, परिवार तथा पुत्रों के साथ अपने लिए धनार्जन करता था, " स्पष्ट करता है कि तत्कालीन स्वार्थपरता पर निगरानी के लिए कुछ आदर्शों का नारा भी दिया गया था। इन सारी मनोवृत्तियों ने निजी संपत्ति को एकत्र करने में आर्थिक प्रतिद्वन्द्विता उत्पन्न की और परिणामत: सामाजिक विषमता का वातावरण विकसित हुआ । इसी कारण ऋग्वेद में कहा गया है कि सभी गायें समान दूध नहीं देतीं, सभी नदियाँ समान जल नहीं देतीं, सभी खेत समान फसल नहीं देते, सभी वृक्ष समान फल नहीं देते, उसी तरह सभी मनुष्य समान नहीं होते । ७६ ऋग्वेद कीमती धातुओं के उपयोग के अस्तित्व को पुष्ट करता है । इससे कीमती धातुओं (स्वर्ण) में मूल्य संजोकर एकत्र करने में धनियों को सुविधा मिली । इसीलिए, इसकी चाह लोगों में बहुत थी । धनी परिवार के नवयुवकों में अपने-आपको स्वर्णाभूषणों से सजाने की प्रथा थी जिससे कि विवाह में मनलायक लड़की चुनने का मौका मिल ७०. ७१. ७२. ७३. ७४. ७५. ७६. ७७. ७८. Jain Education International V. 3.11; 15.5 VI. 61,3 II. 39.1 III. 37.3 II. 19.9, 20.9, 24.16 VIII. 32.21 III. 37.3 VII. 66.8 v. 50.4 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy