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________________ ऋग्वेद की कुछ सामाजिक-आर्थिक प्रवृत्तियाँ डा० हरिश्चन्द्र सत्यार्थी, एम० ए०, पी-एच० डी०, डि० लिट। यह सर्वस्वीकृत है कि प्रायः रचना अपने काल की प्रवृत्तियों को अंकित करती है। ऋग्वेद काल के विषय में आदर्शवादी धारणाएँ व्यक्त की जाती हैं। लेकिन उनके विश्लेषण से तत्कालीन सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों एवं प्रवृत्तियों के संकेत भी मिलते हैं। ऋग्वेद प्रार्थनाओं का समूह है और इसकी प्रार्थनाएं प्रार्थनाकार की आवश्यकताओं और कठिनाइयों की अभिव्यक्ति उनके देवताओं के नाम से हैं। विश्लेषण करने पर इस ग्रन्थ में तनाव और परेशानी का आधिक्य प्रतिबिम्बित होता है। हर तरफ शत्रुओं के आक्रमण की आशंका प्रतीत होती है और इसीलिए उनके खिलाफ घृणा भी मिलती है। शत्रुओं के नाश के लिए देवताओं से अनेकानेक प्रार्थनाएं की गयी हैं। हर क्षण शत्रुओं के अत्याचार से मुक्त होने की ही चिता है ।' शत्रुओं के कोष को अपने अधिकार में लेना तथा अपनी चीजों पर पूर्ण स्वामित्व स्थापित रखना उनके जीवन का बहुत बड़ा उद्देश्य प्रतीत होता है । अग्नि से बार-बार इस बात के लिए प्रार्थना की गयी है कि वह विरोधी पड़ोसियों को जला दे । इतना ही नहीं, घृणा करनेवाले को निष्कासित करने, विरोधियों को जलाकर अग्नि की सहायता से बाहर धकेल देने", शत्रुओं को जला देने, बुरी नीयत से निन्दा करनेवाले दुष्टों को देवताओं के आशीर्वाद से वंचित कराने", धमकानेवाले मित्र तथा १. ऋग्वेद VI. 14.6 अनु० ग्रिफिथ, राल्फ टी० एच०, सं० जे० एल० शास्त्री, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, 1973, नव संशोधित संस्करण, (प्रथम संस्करण-1889); केवल 2-8 मण्डल आदि भाग माने जाते हैं। देखिये ए० बी० कीथ, दि कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इण्डिया I, पृ. 69; पी० एस० देशमुख, दि ओरिजिन एण्ड डेवेलपमेण्ट ऑफ रेलिजन इन वैदिक लिटरेचर, आक्सफोर्ड, 1933, पृ० 201-2; रामशरण शर्मा, आस्पेक्ट्स ऑफ पोलिटिकल आइडियाज एण्ड इन्स्टिटयू शन्स इन एन्शिएण्ट इण्डिया, मोतीलाल बनारसीदास, संशोधित 1968; “फाम्स ऑफ प्रापर्टी इन दि अर्ली पोशन्स ऑफ दि ऋग्वेद", इण्डियन हिस्ट्री कांग्रेस, चण्डीगढ़, 1973. VII. 4.7 III. 18.2 ४. II. 29.2 III. 24.1 ६. IV. 4.4 ७. VII. 104.7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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