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________________ बब्जिगणराज्य : पालि साहित्य के आलोक में 31 घविजयों के बारे में बुद्ध द्वारा बताये गये अपरिहानिय (अपत्तन) धर्मों से यह बात स्पष्ट होती है कि धज्जिजनपद, उसकी राजधानी वैशाली एवं वहाँ के निवासी लिच्छवियों के प्रति बुद्ध का विवार बहुत उच्च था। वज्जियों के उत्कर्ष के ये प्रमुख धर्म निम्नोक्त हैं--(१) वज्जि सन्निपात-बहुल हैं, (२) वज्जि एक होकर सभा का आयोजन एवं समापन करते हैं तथा सर्व-सम्मत कार्य करते हैं, (२) वज्जि अप्रज्ञप्त को प्रज्ञप्त नहीं करते, प्रज्ञप्त का उच्छेद नहीं करते तथा प्रज्ञप्त पुराने वज्जि धर्मों का पालन करते हैं, (४) वज्जि अपने वृद्धों का आदर करते हैं और उनके महत्त्वपूर्ण विचारों को मानते हैं, (५) वज्जि कुल-स्त्रियों एवं कुल-कुमारियों को बलपूर्वक छीनकर नहीं बसाते हैं, (६) वज्जि अपने भीतर-बाहर के सभी चैत्यों को पूजते हैं तथा उन्हें दिये गये दान को जारी रखते हैं तथा (७) वज्जि अर्हतों को धार्मिक सुरक्षा प्रदान करते हैं ।' फिर लिच्छवियों की सुन्दरता, रंगीन एवं आकर्षक पोशाक तथा उनके भद्रयानों को देखकर बुद्धद्वारा उनकी तुलना त्रायत्रिंश लोक के देवों से किया जाना भी उपर्युक्त तथ्य को सम्पुष्ट करता है । बुद्ध कितनी बार वैशाली आये, इसका ठीक-ठीक पता करना कठिन है। किन्तु संभवतः बुद्ध सर्वप्रथम त्रानप्राप्ति के पाँचवें वर्ष वैशाली आये और इन्होंने वर्षावास यहाँ ही किया। पुन: वे एकबार लिच्छवियों के निमंत्रण पर वैशाली आये, जिसका उल्लेख इस प्रकार है : वैशाली में भयंकर अकाल पड़ा, जिससे बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हो गयी। शवों की सड़ान की दुर्गन्ध से लोग उदररोग से आक्रान्त हो गये और वैशाली में प्रेतों का वास हो गया। इसकी सूचना मिलने पर राजा ने एक आमसभा बुलायी, जिसमें बुद्ध को वैज्ञाली आने का निमंत्रण देने का निर्णय लिया गया । उस समय बुद्ध राजगृह के वेलुवन मे थे। अत. लिच्छवि महालि, जो मगधराज बिम्बिसार के मित्र थे, को बिम्बिसार के माध्यम से बुद्ध को वैशाली लाने हेतु राजगृह भेजा गया। बिम्बिसार द्वारा महालि का परिचय पाकर बुद्ध वैशाली जाने के लिए राजी हो गये । राजगृह से गंगा के किनारे तक बिम्बिसार द्वारा सुसज्जित एवं सभी सुविधाओं से सम्पन्न मार्ग पर बुद्ध पाँच सौ भिक्षुओं के साथ वैशाली के लिए शीघ्र ही प्रस्थान कर गये । बुद्ध के साथ महालि भी चले । पाँच दिनों में गंगा के किनारे पहुंचे, जहाँ सुसज्जित नागे तैयार थीं। बिम्बिसार ने आकंठ जल तक नदी में घुस कर बुद्ध को विदा किया। दूसरे किनारे पर लिच्छवियों ने बड़ी सजधज के साथ बुद्ध का स्वागत किया। वज्जि प्रदेश पर बुद्ध का चरण पड़ते ही बिजली की कड़क के साथ मूसलाधार १. दी० नि०, भाग-२, पृ० ५९-६४ । २. वही, पृ. ७७-७८ । ३. बुद्धवंस--अ०, पृ० ६ । ४. खुद्दकपाठ अ०, पृ० १९०-९४, सुत्तनिपात अ०, भाग-२, पृ० ६-१० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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