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________________ 11 गरिमाविहीन आज की वैशाली सूत्रों में वेदेहिपुत्त (जनों में वज्जिविदेहपुत्त अथवा विदेहपुत्त) कहा गया है । बुद्धघोष ने 'वेदेहिपुत्त' का अर्थ किया है-बुद्धिपूर्वक प्रयत्न करने वाला (वेदेन इहति इति वेदेहि, दीघनिकाय, अट्ठकथा १।१३९) । सबसे महान आश्चर्य इस बात का है कि उत्तरवर्ती जैन विद्वान् अपने तीर्थकर भगवान् महावीर की जन्मभूमि वैशाली को ही भूल गये । परिणाम यह हुआ कि महावीर का जन्म-स्थान विवाद का विषय बन गया। कुछ लोग उज्जैनी (संभवतः विशाला नाम पर से) को, कुछ कुंडलपुर (संभवतः कुण्डपुर के सादृश्य से) को और कुछ महावीर जी (दिल्ली के पास महावीर जी नाम का रेलवे स्टेशन) को भगवान् महावीर का जन्म-स्थान मानने लगे। जान पड़ता है कि बहुत समय पहले ही जैनों की दृष्टि में वैशाली महत्त्वपूर्ण नगरी नहीं रह गयी थी। स्थानांग सूत्र में चंपा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ति, साकेत, हस्तिनापुर, कांपिल्य, मिथिला, कौशांबी और राजगृह नाम की जो दस प्राचीन राजधानियाँ गिनायी गयी हैं, उनमें वैशाली का उल्लेख न कर विदेह जनपद की नगरी मिथिला को प्राधान्य दिया गया है। जिन तीन नगरों में बौद्धों की संगीति होने का उल्लेख है, उनमें वैशाली भी है, लेकिन वैशाली में किसी जैन वाचना या जैन साधुओं के सम्मेलन आदि होने का उल्लेख नहीं मिलता। इससे जान पड़ता है कि महावीर-निर्वाण के कुछ समय बाद ही जैन दृष्टि में वैशाली का महत्त्व कम हो गया था । उत्तरवर्ती कथा साहित्य में राजगृह, चंपा, कौशांबी, हस्तिनापुर, मथुरा आदि नगरों की भाँति वैशाली का उल्लेख न किया जाना इसी तथ्य की ओर इंगित करता है। उत्तरकालीन जैनग्रंथों में वैशाली का अर्थ विशालगुणयुक्त किया गया है। ऊपर कहा जा चुका है कि उज्जयिनी नगरी विशाला (संभवतः विशाल होने के कारण) नाम से प्रख्यात थी, और यह भी एक कारण हो सकता है कि वैशाली नगरी के साथ साम्य होने के कारण, इसे महावीर की जन्मभूमि मान लिया गया। सूत्रकृतांग चूर्णी में वैशालीय (वैशाली के निवासी महावीर) का निम्नप्रकार से अर्थ किया गया है : विशाला जननी यस्य, विशालं कुलमेव वा। विशालं वचनं वास्य, तेन वैशालिको जिनः ।। जिसकी विशाल माता है, विशाल कुल है, और विशाल वचन है, उस जिन भगवान को वैशालिक कहते हैं। व्याख्या प्रज्ञप्ति (शतक) में भगवान महावीर के श्रावकों को वेसालिय सादक (वैशाली निवासी श्रावक) कहा है, किन्तु टीकाकार अभयदेव ने वैशालीय का अर्थ विशालगुणसंपन्न कर डाला है। पाइअसद्दमहण्णवो में वेसालिअ का अर्थ 'विशालाख्य जाति में उत्पन्न' किया गया है। कासव (काश्यप) महावीर का गोत्रनाम है। कल्पसूत्र में कासवज्जिया नामक जैन श्रमणों की शाखा का उल्लेख है। फिर भी जैन टीकाकार अभयदेव ने काश्यप का अर्थ इक्षुरस का पान करनेवाला (काशं इक्षुः तस्य विकारः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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