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________________ जैन कानून : प्राचीन और आधुनिक 133 ६. पुत्री, ७. पुत्रो का पुत्र, ८. निकटवर्ती पुत्र, ९. निकटवर्ती गोत्रज (१४ पीढ़ियों तक), १०. ज्ञात्या, ११. राजा । दायभाग की नीति किसी व्यक्ति की मृत्यु पर लागू होती है । यह व्यक्ति के लापता, पागल और संसार से विरक्त हो जाने पर भी लागू होती है । स्त्री की सम्पत्ति का, जो स्त्रीधन न हो, प्रथम दायाद उसका पति और फिर पुत्र होता है । पुत्र शब्द में कानुनी परिभाषा के अनुसार पौत्र और अनुमानतः प्रपौत्र भी आते हैं । निकटवर्ती दामाद के होते दूरवर्ती को अधिकार नहीं है, अतएव भाई का सद्भाव भतीजों को दायभाग से इसी नीति से मृतक का पिता भाई से पहले दाय का अधिकारी होगा बतलाया गया है । वञ्चित कर देता है । । हिन्दू-ला में भी ऐसा यदि पुत्र अपने पिता के साथ रहता है और सम्पत्ति बाबा की है तो उसमें उसका अविकार । विभाग के पश्चात् पिता की विभाजित सम्पत्ति का माता के होते हुए वह स्वामी नहीं हो सकता क्योंकि उसकी माता ही उसकी अधिकारिणी होगी। यदि माता पिता दोनों मर जावें तो औरस व दत्तक जैसा पुत्र हो वही दाय का अधिकारी होगा । किसी मनुष्य के बिना पुत्र के मर जाने पर उसको विधवा उसकी सम्पत्ति की पूर्ण अधिकारिणी होगी चाहे सम्पत्ति विभाजित हो या अविभाजित । पति के भाग की पुत्र की उपस्थिति में भी वह पूर्ण स्वामिनी होगी । यदि विधवा के औरस पुत्र न हो और किसी को पुत्र ' के रूप में गोद न ले और प्रेमवश पुत्री को अपना दायाद बनावे तो उसके मरने पर उसकी सम्पत्ति की अधिकारिणी उसकी पुत्री होगो न कि उस (विधवा) के पति के कुटुम्बीजन । उस पुत्री की मृत्यु के पश्चात् वह सम्पत्ति उसके पुत्र को मिलेगी और यदि पुत्र न हो तो उसके पति को पर वह सम्पत्ति उस विधवा के कुटुम्बी जनों को न लौट सकेगी । जैन कानून के 'अनुसार जामाता, भांजा, सास ओर लड़के की बहू उत्तराधिकारी नहीं होते । व्यभिचारिणी विधवा को भी दाय का कोई अधिकार नहीं है । वह केवल गुजारा पा सकती है । जिसका अन्य कोई दायाद न हो और केवल एक पुत्री छोड़कर मरा हो तो वह पुत्री अपने पिता की सम्पत्ति की पूर्ण स्वामिनी होगी । उसके मरने पर उसके अधिकारी, उसके पुत्रादि उस सम्पत्ति के अधिकारी होंगे। यदि किसी मनुष्य के कोई निकट अधिकरी नहीं है केवल दोहित्र हो तो उसकी पूर्ण सम्पत्ति का अधिकारी दौहित्र होगा क्योंकि नाना और दौहित्र में शरीरिक सम्बन्ध है । माता का स्त्रीधन पुत्री को मिलता है चाहे विवाहिता हो या अदिवाहिता । अविवाहिता पुत्री का स्त्रीधन उसकी मृत्यु होने पर उसके भाई को मिलता है । विवाहिता पुत्रियाँ अपनीअपनी माताओं का स्त्रीधन पाती हैं । यदि कोई पुत्री जीवित न हो तो उसकी पुत्री और उसके अभाव में मृतक स्त्री का पुत्र अधिकारी होगा । और उसके भी अभाव में उसका पति होगा । स्त्री धन के अतिरिक्त, विधवा की अन्य सम्पत्ति का अधिकारी उसका पुत्र होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522603
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1982
Total Pages294
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size6 MB
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