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________________ 128 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN No. 3 मान्यता के अनुसार विवाह चार पुरुषार्थों में से धर्म अर्थ और काम को सिद्धि के लिए परमावश्यक है और इस कड़ी में वह-परम्परा दृष्टि से-मोक्ष प्राप्ति में साधक हो सकता है । साक्षात् उसका मोक्षप्राप्ति से कोई सम्बन्ध नहीं। मोक्ष प्राप्ति का साधन तो केवल सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चरित्र ही हैं। इसके लिए ब्रह्मचर्य और गृहत्याग परम आवश्यक हैं। विवाह के मुख्य दो अंग हैं-वर और कन्या । यौवन प्राप्त प्रत्येक युवा और युवती विवाह योग्य है । जैन आगमों में विवाह योग्य अवस्था का उल्लेख' इस प्रकार किया है : १. उम्मुक बाल भवे २. णवंगसुत पडिबोहिए, ३. अलं भोगसमत्थे । अर्थात् जिनका बाल भाव समाप्त हो गया है, जिनके शरीरिक नव अंग जागृत हो गये हों तथा जो भोग करने में समर्थ हो, ऐसे ही व्यक्ति की आयु विवाह योग्य है । उससे ज्ञात होता है कि बालविवाह मान्य न था तथा फिर भी विवाह को आयु वर्षों की मर्यादा में नहीं बंधी थो। आयु सम्बन्धी सीमाओं में देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन होता था। जैन आगमों में वर और कन्या के आदर्श गुणों का वर्णन मिलता है। उन वर्णनों कों व्यावहारिक जगत् में मानना तो संभव नहीं है। फिर भी इतना तो मान्य है कि कन्या और वर को अनुरूप आयु, रूप, लावण्य, यौवन और समानकुलोत्पन्न होना चाहिए । प्राचीनकाल में विवाह का क्षेत्र विस्मृत था। वह आज जैसा संकुचित न था। तब जाति और दायरे के भीतर विवाह जैसी वात भी न थी। उस काल में वर्तमान जातियों का निर्माण नहीं हुआ था। केवल मानवमात्र एक जाति थी इसलिए अन्तर्जातीय विवाह शब्द का प्रयोग उस उस काल में नहीं था। यद्यपि उस काल में वर्ण नाम से कुछ दायरे अवश्य थे पर वे विवाह में बाधक न थे। आज निकट के संबन्धियों में विवाह नहीं हो सकता और अपनी जाति तथा दायरे के बाहर विवाह नहीं हो सकता। प्राचीन काल में ऐसी वात न थी। निकट के सम्बन्धियों में केवल अपने परिवार के अर्थात् भाई-बहन, पिता-पुत्री आदि के अतिरिक्त सबसे विवाह हो सकता था। आगमों, जैनपुराणों और चरितग्रन्थों में इनके उदाहरण भरे हुए हैं। बुआ की लड़की, मामा की लड़की तथा सगोत्र में ही चाचा के पुत्र-पुत्रियों के बीच विवाह में दोष नहो माना गया है। पर आज ऐसा बहुत कम होता है और इस विषय में स्थानीय रिवाज का ध्यान रखकर ही किया जाता है । आजकल मौसी की पुत्री, सास की बहिन तथा गुरु को पुत्री से विवाह अनुचित माना गया है। ___ मध्यकालीन जैन स्मृतियों के अनुसार उच्चवर्ण वाला पुरुष नीचवर्ण की कन्या से विवाह कर सकता है परन्तु शूद्र स्त्रो से किसी उच्च वर्ण वाले पुरुष की जो सन्तान होगी, १. भगवती सूत्र २१.११, उ. ११; ज्ञानधर्म १.१.३ । २. देशकालायेक्षो मातुलकन्या सम्बन्धः, (नीतिवाक्यामृत, ३१.२९) । ३. विशेष के लिए फत्तेलालजीकृत 'जैनविवाह पद्धति' पृ० २ देखें । ४. देखें जु० कि० मुख्तारकृत विवाह क्षेत्र प्रकाश और कामता प्रसाद कृत मैरीएज इन जैन लि०। ५. अर्हन्नीनि ३८.४०; भद्रबाहुसंहिता ३२.३३; इन्द्रनन्दि संहिता ३०.५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522603
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1982
Total Pages294
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size6 MB
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