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________________ 242 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 करते हुए जैन पुरातत्त्व के महत्त्व पर प्रकाश डाला है। ए० ग्यूरिनट ने जैन अभिलेखों के ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डाला है।' ग्यूरिनट का विशेष योगदान जैन ग्रन्थ-सूची के निर्माण करने में भी है। उन्होंने ८५२ जैन ग्रन्थों का परिचय अपने "एसे आन जैन विब्लियोग्राफो" नामक निबन्ध में दिया है। इसके बाद 'नोटस् आन जैनविब्लियोग्राफी' तथा 'सम कलेक्शनस आफ जैन बुक्स' जैसे निबन्ध भी उन्होंने जैन ग्रन्थ-सूची के निर्माण के सम्बन्ध में लिखे हैं। इनके पूर्व भी १८९७ ई० में अर्नेस्ट ल्यूमन ने २०० हस्तलिखित दिगम्बर जैनग्रन्थों का परिचय अपने एक लेख में दिया है। जैनसाहित्य के ग्रन्थों का अध्ययन करनेवाले पाश्चात्य विद्वानों में विन्तरनित्स का स्थान उल्लेखनीय है। उन्होंने अपने 'हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ में लगभग १५० पृष्ठों में जैन-साहित्य का विवरण दिया है। उस समय उन्हें उतने ही जैनग्रन्थ उपलब्ध थे । इस विवरण में विन्टरनित्स ने जैन-कथाओं का भारत की अन्य कथाओं एवं विदेशी कथाओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। विदेशों में जैनविद्या का अध्ययन केन्द्र लगभग सौ वर्षों तक पाश्चात्य विद्वानों द्वारा जैनविद्या पर किया गया अध्ययन भारत एवं विदेशों में जैनविद्या के प्रचार-प्रसार में पर्याप्त उपयोगी रहा है। इन विद्वानों के कार्यों एवं लगन को देखकर भारतीय विद्वान् भी जनविद्या के अध्ययन में जुटे । परिणामस्वरूप न केवल प्राकृत-अपभ्रश साहित्य के सैकड़ों ग्रन्थ प्रकाश में आये, अपितु भारतीय विद्या के अध्ययन के लिए जनविद्या के अध्ययन की अनिवार्यता अब अनुभव की जाने लगी है। डा० पी० एल० वैद्य, डा० एच० डी० बेलणकर, डा० एच० एल० जैन, डा० ए० एन० उपाध्ये, डा० जी० पी० तगारे, मुनि पुण्यविजय एवं मुनि जिनविजय, दलसुखभाई मालवणिया प्रादि विद्वानों के कार्यों को इस क्षेत्र में सदा स्मरण किया जावेगा। विदेशों में भी वर्तमान में जैन विद्या के अध्ययन ने जोर पकड़ा है। पूर्व जरमनी में फ्री युनिवर्सिटी बर्लिन में प्रोफेसर डा० क्लोस ब्रहन (Klaus Bruehn) 'जैन लिटरेचर एण्ड माइथोलाजी, इंडियन आर्ट एण्ड इकोनोग्राफी' का अध्यापन कार्य कर रहे हैं। उनके सहयोगी डा० सी० बी० त्रिपाठी 'बुद्धिस्टजैन लिटरेचर' तथा डा. मोनीका जार्डन जैन लिटरेचर का अध्यापन कार्य करने में संलग्न है । पश्चिमी जर्मनी हमबुर्ग में डा० एल० आल्सडोर्फ स्वयं जैनविद्या के अध्ययन-अध्यापन में संलग्न हैं। आप उतराध्ययननियुक्ति पर कार्य कर रहे हैं। उनके छात्र श्वेताम्बर एवं दिगम्बर जैन ग्रन्थों पर शोध कर रहे हैं। १. Ibid, D. K. Banerjee, p. 106. २. ibid, p. 106. ३. 'वोनेर जेटिश्चिफूट फुडी कुण्डे डेस मोर जेनलेण्डस' (जर्मनी), पृ० २९७-३१२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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