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________________ विदेशी विद्वानों का जैनविद्या को योगदान 239 'अपभ्रंश स्टडियन' नाम से स्वतन्त्र ग्रन्थ ही लिपजिंग से प्रकाशित किया, जो अपभ्रश पर अब तक हुए कार्यों का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। १९३९ में लुइगा नित्ति डोलची के 'द अपभ्रश स्तवकाज आफ राशर्मन' से ज्ञात होता है कि अपभ्रंश कृतियों के फ्रेंच में अनुवाद भी होने लगे थे। नित्ति डोलची ने अपभ्रश एवं प्राकृत पर स्वतन्त्र रूप से अध्ययन ही नहीं किया, अपितु पिशल जैसे प्राकृत भाषा के मनीषी की स्थापनाओं की समीक्षा भी की है। सन १९५० के बाद अपभ्रश साहित्य की अनेक कृतियाँ प्रकाश में आने लगीं । अतः उनके सम्पादन और अध्ययन में भी प्रगति हुई। भारतीय विद्वानों ने इस अवधि में प्राकृत-अपभ्रश पर पर्याप्त अध्ययन प्रस्तुत किया है।' विदेशी विद्वानों में डा० के० डी० वीस पाल्सडोर्फ के नाम उल्लेखनीय हैं। के० डी० बीस ने १९५४ ई० में 'अपभ्रश स्टडीज' नामक दो निबन्ध प्रस्तुत किये।२ द्रविड़ भाषा और अपभ्रश का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए उन्होंने 'ए द्राविडियन टर्न इन अपभ्रश'३, 'ए द्राविडियन इन अपभंश'४ नामक दो निवन्ध तथा 'अपभ्रश स्टडीज' का तीसरा" और चौथा निबन्ध १९५६-६१ के वीच प्रकाशित किये। बीसवी शताब्दी के सातवें दशक में अपभ्रंश भाषा के क्षेत्र में विदेशी विद्वान् तिश्योशी नारा का कार्य महत्त्वपूर्ण है। सन् १६६३ ई० में उन्होंने 'शार्टनिंग आफ द फाइनल वावेल आफ इन्स्ठ० सीग० एन एण्ड फोनोलाजी आफ द लेंग्वेज इन सरह दोहा' नामक निवन्ध प्रकाशित किया", १९६४ ई० में 'द स्टडी आफ अवहट्ट एण्ड प्रोटोबॅगाली' विषय पर कलकत्ता विश्वविद्यालय से आपका शोध-प्रबन्ध स्वीकृत हुआ। इसके बाद भी अपभ्रश पर आपका अध्ययन गतिशोल रहा । १६६५ ई० में 'अपभ्रंश एण्ड अवहट्ट-प्रोटो न्यू इण्डो आयर्न स्टेजेज' नामक निबन्ध आपके द्वारा प्रस्तुत किया गया । जैन साहित्य पाश्चात्य विद्वानों ने केवल प्राकृत एवं अपभ्रश का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन ही नहीं किया अपितु इन भाषाओं के साहित्य का भी अध्ययन किया १. डा० शास्त्री, वही, पृ० ९०-९४. २. Journal of the American Oriental Society. Vol. 74. No. 1. p. 1-5, No. 3, p. 142-46. 3. Journal of the Rayal Asiatic Socieric of Great Britan and Ayar land, London, Vol. 1-2. 1954. ४. Prof. P. K. Gour Commemoration Vol. 1960. ५. Journal of the American Oriental Society, Vol. 79. No. 1. 1959. ६. Ibid, Vol. 81, No. 1 p. 13-21, 1961. ७. Bulleten of the Philological Society of Calcutta, 4, 1, 1, 1963. ८. Journal of the linguistic society of Japan, Vol. 42, p. 47-58, 1965. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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