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228 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 में क्रमशः अभयमुद्रा और फल धारण किया है। मन्दिर नं० ११ में अवस्थित मूर्ति में चतुर्भुज यक्ष की ऊपरी दाहिनी भुजा खण्डित है, और वाँयी में कमलदंड प्रदर्शित है। यक्ष की निचली दो भुजाओं में अभयमुद्रा और फल चित्रित है। द्विभुज यक्षिणी को दाहिनी भुजा में फल प्रदर्शित है, जब कि वाँयी से वह गोद बैठे बालक को सहारा दे रही है। उपयुक्त यक्षी निश्चित ही २२ वें तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षिणी अम्बिका के प्रभाव को दरशाती है, जिसे शिल्प में सदैव वायें हाथ से गोद में अवस्थित बालक को सहारा देते हुए निरूपित किया गया है।
__ मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में ग्यारसपुर स्थित मालादेवी मन्दिर (आरम्भिक १० वीं शती) के गर्भगृह की दक्षिणी भित्ती पर भी लेखक को महावीर की एक मनोज्ञ मर्ति प्राप्त हुई है। कमलासन पर ध्यान मुद्रा में आसीन महावीर के अलंकृत प्रासन के समक्ष लांछन-सिंह-उत्कीर्ण है। सिंहासन के सूचक दो सिंहों के मध्य धर्मचक्र चित्रित है। दांयी और आसीन द्विभज यक्ष को दाहिने व वायें हाथों में क्रमशः अभयमुद्रा और फल धारण किये अंकित किया गया है। सिंहासन के बायें कोने पर आसीन द्विभुज यक्षिणी की दोनों भुजाओं में वीणा प्रदर्शित है। सिद्धायिका की भुजाओं में वीणा का प्रदर्शन श्वेताम्बर परम्परा का अनुपालन है। गुच्छकों के रूप में प्रर्दाशत केशरचना उष्णीष के रूप में आवद्ध है। महावीर के दोनों पाश्वों में स्थित सेवकों की एक भुजा में चामर
और दूसरी जाँघ पर स्थित है । अलंकृत भामण्डल से युक्त महावीर के शीर्षभाग में विछत्र और नगाड़ावादक के साथ ही अशोक वृक्ष को पत्तियां और दो बडोय. मान मालाधरों को भी मूर्तिगत किया गया है ।
उल्लेखनीय है कि देवगढ़, खजुराहो और ग्यारसपुर से प्राप्त सभी महावीर मूर्तियां (१० वीं-१२ वीं शती) दिगम्बर-सम्प्रदाय की कृतियाँ हैं ।
राजस्थान में भरतपुर राज्य के कटरा नामक स्थल से प्राप्त और सम्प्रति राजपूताना संग्रहालय, अजमेर में शोभा पा रही महावीर प्रतिमा (नं० २७९) संवत् १०६१ (१००४ शती) में तिथ्यंगित है। पद्मासन पर ध्यानमुद्रा में बैठे तीर्थंकर को दो चामरधरों, सिंहासन, यक्ष यक्षिणी और लांछन सिंह के साथ उत्कीर्ण किया गया है। गज पर आसोन द्विभुज यक्ष की वाम भुजा में धन का थैला प्रशिा है, और दाहिनी भुजा खंडित है। सिंह पर आरूढ़ द्विभुज यक्षिणी की दाहिनी भुजा में खड्ग स्थित है, तथा वाम भुजा भग्न है। इस मूर्ति का महत्त्व कलाकार के यक्ष-यक्षिणी के वाहनों और आयुधों के चित्रण में कुछ सीमा तक प्रतिमालाक्षणित ग्रन्थों के निर्देशों का निर्वाह है।
___ इटावा के अशवखेरा से प्राप्त संवत् १२२३ (११६६) की एक विशिष्ट ध्यानस्थ मूर्ति सम्प्रति लखनऊ संग्रहालय (जे ७८२) में सुरक्षित है। मूर्ति में पीठिका के मध्य में धर्मचक्र के स्थान पर अभय एवं कलश धारण किये द्विभुज देवी आमूर्तित है, जिसके नीचे महावीर का लांछन सिंह उत्कीर्ण है। इस मूर्ति
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