SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 226 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 पीठिका के मध्य में उत्कीर्ण धर्मचक्र के दोनों और दो सिंहों का धर्मचक्र की ओर मुख किये चित्रण इस प्रतिमा की महावीर अंकन से पहचान की पुष्टि करता है । यह ज्ञातव्य है कि सिंहासन के सूचक दोनों सिंहों को जिन मूर्तियों में सर्वदा दोनों छोरों पर ही उत्कीर्ण किया जाता था न कि मध्य में, और साथ हो सिंहासन के दोनों ओर जिनके लांछन के उत्कीर्णन की परम्परा भी निश्चित रूप से गुप्तयुग में ही प्रारम्भ हो गई थी, जिसका एक उदाहरण राजगिर से प्राप्त चौथी शती की नेमिनाथ मूर्ति है । परवर्ती युग में भी लांछन के धर्मचक्र के दोनों ओर उत्कीर्णन को परम्परा उत्तर प्रदेश एवं बिहार की जिन मूर्तियों में विशेष लोकप्रिय रही है ।' पीठिका के दोनों छोरों पर चित्रित दो तीर्थंकर श्राकृतियां इस अंकन की अपनी विशेषता है । महावीर के दोनों पावों में दो चामरधारी सेवक आकृतियां उत्कीर्णित हैं । पृष्ठभाग में प्रदर्शित प्रलंकरणहीन प्रभामण्डल के दोनों ओर दो उड्डीयमान गन्धर्वों का चित्रण ध्यानाकर्षक है । देवता की केशरचना गुच्छकों के रूप में निर्मित है । गुप्तयुगीन समस्त विशेषताओं से युक्त इस महावीर प्रतिमा के मुखमण्डल पर प्रदर्शित मंदस्मित, शांति व विरक्ति का भाव प्रशंसनीय है । ज्ञातव्य है कि गुप्तयुग में महावीर के निरूपण का यह अकेला ज्ञात उदाहरण है । लेखक को मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो से महावोर की १० वीं से १२ वीं शती के मध्य की ९ स्वतंत्र मूर्तियां प्राप्त हुई हैं, जिनमें से आठ में महावीर को ध्यानमुद्रा में आसीन चित्रित किया गया है, और शेष एक में देवता खड्गासन मुद्रा में खड़े हैं। सभी मूर्तियों में महावीर को अलंकृत आन पर, जिसके नीचे लांछन सिंह उत्कीर्ण है, मूर्तिगत किया गया है । सिंहासन के प्रतीक दो सिंहों के मध्य हाथ जोड़े दो उपासकों से वेष्टित धर्मचक्र का चित्रण भी सभी मूर्तियों की विशेषता है। महावीर विभिन्न आभूषणों से अलंकृत पार्श्ववर्ती चामरधरों से सेवित हो रहे हैं । चामरधरों की एक भुजा में चामर प्रदर्शित है और दूसरी भुजा जानु पर स्थित है । पृष्ठभाग में अलंकृत प्रभामण्डल से युक्त महावीर की गुच्छों के रूप से प्रदर्शित केशरचना उष्णीष के रूप में आवद्ध है । साथ ही शीर्षभाग में त्रिछत्र, दुंदुभिवादक, दो उड्डीयमान मालाधर और दो सवार सहित गज आकृतियों को भी संपूजित किया गया है। सभी मूर्तियों के परिकर में कई संक्षिप्त जिन प्राकृतियां भी उत्कीर्ण हैं । चार उदाहरणों में सिंहासन के मध्य से झांकते हुए सिंह ( लांछन ) का उत्कीर्णन खजुराहों के ही महावीर मूर्तियों की विशेषता है । खजुराहो से प्राप्त ९ महावीर मूर्तियों में से तीन में यक्ष-यक्षिणी को उत्कीर्ण नहीं किया गया है । महावीर की प्रथम मूर्ति पार्श्वनाथ मन्दिर (६५४ ईसवी) के गर्भगृह की दक्षिणी भित्ति पर उत्कीर्ण है। इनमें दो पार्श्ववतीं चामरधरों (1) Consult, Tiwari, Maruti Nandan Prasad, 'An Unpublished Jina Image in the Bharat Kala Bhavan, to appear in the Vishveshvaranand Indological Journal (Hoshiarpur Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy