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________________ જૈનધર્મ વિકાસ, ॥ श्री आदिनाथ चरित्र पद्य ॥ (जैनाचार्य श्री जयसिंहसूरीजी तरफथी मळेलु.) (dis पृ. ६४ था मनुस धान) करत निर्माण महोत्सव भारी, देवन आकर किया सुखारी । वज्रनाम मुनि इत धृतधारी, हुए मुनि संग धरा विहारी ॥ चंद्रक्रांति पा औषधि प्रगटे, तिमि लब्धी मुनि चरणन लिपटे । कोटि वेध रस होवत सोना, श्लोम स्पर्श तिमि कोड़ सुहोना ॥ नाक रेंट की महिमा भारी, नास करे व्याधी दुखकारी । अंग मेल सुगंधि आवा, कस्तूरी केशर लजवावा ॥ अणुत्व शक्ति आइ मुनि पासा, महत्व शक्ति सेवाकरआसा। लघुत्व गुरुत्व और हे प्राप्ती, प्राकाम्य शशत्व सेव मुनी चीता ॥ अप्रति घाती वशित्व सुहाई, अंतरध्यान रुपत्वहिं आई। बीज बुद्धि पदसारिणि लब्धी, मनोवली अरु कोस्टहिं बुद्धी॥ वारकाय बली अमृत क्षीरा, मध्वाज्या श्रवी रहती तीरा । महाल सीनय श्रोत सभीना, विद्याचरण आसि विस लिना ॥ पर उपयोग न करते स्वामी, नहीं मुमुक्ष अकांक्षा कामी। बीसस्थानको अदभुत रुपा, वज्रनाभ मुनि मिला अनूपा ॥ पुनि तिर्थकर गोत्र वंधावा, अरिहंत सिद्ध प्रवच पद पावा । आचार्य पर्यय स्थविर पद, उपाध्याय साधू दर्शन पद ॥ ब्रम्हचर्य चारित्र सुहावा, विनय समाधि दान तप पावा । वैयावच्चहे अभिनव ज्ञाना, संयम श्रुतपद तीर्थ समाना ॥ . बीसस्थान महि एको ध्याया, तिर्थकर पद तेहिते पावा। बाहु मुनि वैयावच्च साधा, मुनि सुबाहु लोकोतर बांधा ॥ वज्रनाभ मुनि किन्ह बड़ाई, वैयावच्च साधा मुनिराइ। महापीठ अरु पीठ मुनिशा, सुन प्रसंस मन कीनी इर्शा॥ कहा मनहिं मन शास्त्र पढ़ाई, उपकार वृति चित विसराई। नारी कर्म दोय मुनिवर बांद्या, इमि सठ मुनि प्रवजा साधा ॥ चवदह लाख पूर्व तक भाई, चवजा साधी सब चितलाई । पुनि षठ मुनि अनशन वृतधारा, इहि विधि कर्म खपाय अपारा॥ .
SR No.522529
Book TitleJain Dharm Vikas Book 03 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1943
Total Pages28
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size7 MB
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