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________________ - જૈન ધર્મ વિકાસ न आना है न जाना है न जनमना है न मरना है । फिकर जिकर न डरही है न खाना है न पीना है । जब खाली पेट भरकर के सकल ब्रह्माण्ड में नूठी । मिठाई मुक्ति की आली मिली छुट्टी, मिली छुट्टी ॥ हां हां यही मिठाई है, यही तो समस्त जीवनतत्व का सार है, और यही तो तृप्ती का मूलभूत साधन है। इसीके वशीभूत होकर सिद्ध महात्मा दुनियादारी के प्रबल मोह को ऐसे त्याग देते हैं जैसे सूखे सरोवर को राजहंस । अब देखना है कि यह अनमोल और अनौखी मिठाई किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है इसके लिये हमें किंमत कितनी और किस रूप में खर्चनी होगी, यही तो विचारणीय विषय है। बिना मूल्य मिलती नही जग विच कोई चीज। फिर मुक्ति कैसे मिले मुफत में हरगीज ॥ किंमत तो देनी ही पडेगी, बेमोल वस्तु की किंमत भी तो अनमोल और अनोखी ही होगी; वह क्या त्याग, किसका कषायों का यही तो इसका दाम है। श्री महावीर भगवान् ने भी तो यही कहा है-“कषाय मुक्तीः किल मुक्ती रेव" अर्थात् कषायों का त्याग ही मुक्ती की मूल साधना है। किसी कवीने कहा है कि राग द्वेष लोभ अरु ममता, जिसके हिरदे बीच बसें । वह क्या मुक्ति रसको चाखे जटिल जाल के बीच फसें ॥ . बिना त्याग के इसका मिलना अत्यंत ही दुष्कार है। इसके बिना मोक्ष की आशा करना उसी प्रकार है जिस प्रकार आकाश कुसुम का पाना । बिना त्याग के मुक्ती नहीं और बिना त्याग के ज्ञान नहीं, इसीलिये तो कहा गया है कि मोक्ष का गुरू ज्ञान है और ज्ञान का गुरू त्याग है। वैदिक सिद्धांत भी इसीको मानता है वह भी "ज्ञानादेव ही केवल्यम्" कहता है अर्थात् ज्ञान ही से मोक्ष है, नैयायिकों की भी यही कल्पना है, वेदांत भी "अविद्यानिवृत्तौ केवलस्य सुख ज्ञानात्मकात्मनोऽवस्थान मोक्षः" जैनशास्त्र भी "कृत्स्न कर्म क्षयान् मोक्षः” इसमें किसी का भी विरोध नहीं, सत्य का न तो कहीं विरोध ही कोई कर सकता है और न इसमें विवाद ही हो सकता है। . . (अपूर्ण.)
SR No.522523
Book TitleJain Dharm Vikas Book 02 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1942
Total Pages40
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size9 MB
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