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________________ | નર્મવિણસ. ४-५ मी. पुस्त। २. भला-शम, स. १८९८. ॥श्रीनीतिचतुर्विशिका ॥ . लेखक : आचार्यश्री विजयपद्मसूरीजी. . ॥ आर्यावृत्तम् ॥ पणमिय थंभणपासं-थुत्तं सिरिणीइसरिराअस्स। विरएमि महुल्लासा-नियपरकल्लाणकरणद्वं ॥१॥ गुणगणरयणसमुई-गंभीरं धीरपुरिसमउउमणि । मुणिगणवइगीयत्थं-वंदे गुरुणीइसरिमहं ॥२॥ . जाओ जो विक्कमए-णहगुणनिहिचंदपमिइसंसिद्धे । इक्कारसीइ सुक्के-पक्खे वरपोसमासम्मि ॥३॥ जेहिं सुहवेरग्गा-गुरुवरसिरिभावविजयपासम्मि । णच्चा णिस्सारभवं-बहुविहदुक्खेहि परिकलियं ॥४॥ णिहिवेयणिहाणिंदु-प्पमिए वरिसे असाढमासम्मि । इक्कारसीतिहीए-सुक्के चारित्तमादिणं ॥५॥ णहसरणिहिंदुवरिसे-सुक्कचउत्थीइ माहमासम्मि ।। संजाया गुरुदिक्खा-जेसिं वदामि गुरुणीई॥६॥ इगरसनिहिंदुवरिसे-मग्गसिरे सुक्कपंचमीदियहे । : जेसि सूरियणयरे-गुरुणा दिणं गणीसपयं ॥७॥ पण्णासपयं जेसिं-नयणरसनिहाणचंद वरिसम्मि। इक्कारसीइ कण्हे-कत्तियमासस्स पक्खम्मि ॥८॥ सिरिसिद्धायलतित्थे-नियगुरुसंपुजभावविजएहिं। जिणसंघाइसमक्खं-दिणं पवरुस्सवाईहिं ॥९॥ गुरुभावविजयगणिणा-जइणउरीरायणयरमज्झम्मि । रससायरणिहिचंदे-सुके सुहपंचमीदियहे ॥१०॥ आयरियपयं दिणं-वरुस्सवाईहि संघपचक्खं । आयरियणीइसूरी-तत्तो विझ्या वसुमईए ॥११॥
SR No.522516
Book TitleJain Dharm Vikas Book 02 Ank 04 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1942
Total Pages104
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size14 MB
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