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આદીનાથ ચરિત્ર પદ્ય
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धान ढेरी सम रतन सुहावा, अतुलित संपत ते घर आवा । ताल निकट जिमि भूमिर्गणि, तेसे हि संपति धन कर सीली। एक समय साहू मन आवा, वसंत पुरी चलना ठह रावा । पुनि डोंडी निज नगर फिराई, राह खर्च मैं दूंगा भाई । चलो बसंत संग बनाइ, यह रचना मम मन अति भाई । चलन समय मेरी बजवाई, तेहिसे चलना पडे जताई ॥ । भेरी नाद सुन हुइ तैयारी, बाहर नगर जुड़ा संघ भारी । धर्म घोष आचार्य वर, तेज वंत अति नेमि । आये धन साहु निकट, साहु वंदत अति प्रेमि ।। पुनि साहू पूछत अति प्रेमा, स्वामी कहो कुशल अरु क्षेमा॥ बड़भागी मुज कीना नाथा, दर्शन कर में हुआ सनोथा। हुक्म करो मुझको अय स्वामी, लगत उपाय पूर दूं खामी । तब बोले मुनिनाथ कृपालु, में भी संग चलूं श्रधालु। यह सुन सेठ कहे हर्षाइ, धन्य भाग्य मुनि पडे दिखाई ॥ तुरत बुलाय रसोइया, हुक्म दिया फरमाय । व्यंजन अति गुरु कारणे, लाओ वेग बनाय । यह सुनि तुरत कहे गुरु राई, यह अहार मुनि कढपन भाई । अनायास जो मिलहिं अहारा, जैन मुनि कर गोचर कारा ।। नद निमाण नीर नहीं कलपे, अनि सोधित जल हम कलपे। तेहि क्षण एक पुरुष तहं आवा, सुन्दर आम सजा कर लावा ॥ तससाहूगुरुसनइमिकहऊ-ग्रहनकरननाथ फल लहऊ । गुरु बोले सुन अय श्रद्धालु, सचितफलोंको छूवन साधू ॥ यह सुनि साहु कहे करजोरी, दुस्तर वृत साधहुमुनि झोरी । तुम अनुकूलबेराऊ अहारा, चलिये नाथ संग संघ सारा ।। इमिकह पंथ गमन करनको, हुक्म दिया सबको चलने को। चंचल अस्व उंट अरु गाड़ी, हर्ष सहित सब चले अगाड़ी॥ संघ साथ आचार्य विहारी, धर्ममुरत अति सोभा कारी। आगे आगे साहु पगधारे, तापिछे मणिभद्रसिधारे ।।
અપૂર્ણ.