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________________ ता. १०-७-१८१५] જૈન ડાયજેસ્ટ (५) एक दिन हाथ की अंगुलिओ में बड़प्पन को लेकर विवाद हो गया। चारो फैसला करने के लिये अंगठे के पास पहुंची व अपनी २ विशेषताओ का वर्णन करने लगे। सबसे पहले अंगूठे के पास की तर्जनी अंगुली ने यहा--मैं लिखतो हूँ, चित्र बनाती हूँ, गलती करने वाले को तर्जना देती हूं, इसलिये सबसे बड़ी मैं हूँ। मध्यमा ने कहा-बीणा की मधुर घनि से सबके मन को खुश करती हूँ, चिमटी बजाती हुँ व आकार में भी सबसे बड़ी हूँ, इसलिये मेरा बड़प्पन तो स्वतः सिद्ध है। ____ अनामिका ने कहा-देवों का पूजन करना व स्वस्तिक बनाना आदि सभी प्रकार के मंगल कार्य मेरे द्वारा सम्पन्न होते हैं, अतः बड़ी कौन है यह बताने की आवश्यकता ही नहीं है। कनिष्ठा ने कहा-किसी भी प्रकार का कार्य करते हुए कानोंमें खुजलाहट होती है तब नम्र भावसे सबकी सेवा करती हूँ। पौराणिक और ऐतिहासिक कथानकों में मेरे बलिदान की कहानियाँ भू-मण्डल पर सदा गुंजती रही हैं, अतः मुझे सबसे अधिक महत्व मिलना चाहिए। अंगूठे ने फैसला देते हुये कहा-पहिनों ! बड़प्पन को लेकर झगड़ा मत करो। सह-अस्तित्व के सिद्धान्त को अपनाकर शान्ति से रहे व अपना कर्तव्य निभाती रहो। तुम अपने २ स्थान पर सभी बड़ी हो,
SR No.522168
Book TitleBuddhiprabha 1965 07 SrNo 68
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Shah
PublisherGunvant Shah
Publication Year1965
Total Pages64
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Buddhiprabha, & India
File Size1 MB
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