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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ': २-३] श्री सुमतिसमव........न्य इस काव्यकी पत्र संख्या २१ है, जिसमें पांचवां व छठा पत्र अनुपलब्ध हैं। प्रति पृष्ठ १३ पंक्ति एवं प्रति पंक्तिमें ४० अक्षर लिखे हुए हैं। कहीं कहीं बोर्डरमें सूक्ष्माक्षरी टिप्पण भी लिखे हुए हैं। हर्षकुल गणि जैसे विद्वानने इसे लिखवायी है अतः पाठ भी बहुत शुद्ध है। काव्यकी रचनाका समय तो नहीं दिया गया पर प्रस्तुत प्रति सं. १५५४ इलदुर्ग महानगर (ईडर)में लिखी गयी है अतः रचना इसी समयके आसपासकी ज्ञात होती है। सुमतिसाधुसूरिका परवर्ती वृतान्त इसमें नहीं दिया गया है अतः उनकी विद्यमानतामें ही रचा जाना निश्चित है। मांडवगढके जावड़साह अपने समयके बहुत ही प्रभावशाली व समृद्ध धार्मिक पुरुष थे। उनके सम्बन्धमें और भी कई ग्रन्थों एवं शिलालेखोंसे अच्छी जानकारी मिलती है । अभी ग्वालियरमें डॉ. सुभद्रादेवी-जो कि मांडवगढके जैन इतिहासकी कई वर्षोंसे सामग्री संग्रहीत कर रही हैं से बातचीत हुई तो उन्हें जावड़साह पर एक लेख शीघ्र ही तयार कर प्रकाशित करनेकी प्रेरणा की गई थी। सौभाग्यसे तत्काल ही उनके सम्बन्धमें एक अच्छी जानकारी प्राप्त हो गई जो एक बड़े हर्षकी बात है । ___ इस काव्यकी खोज करने पर संभव है और भी कहीं प्रतियां प्राप्त हो जाय अतः शीघ्र ही शोध की जाकर इसे प्रकाशमें लाना चाहिए । हमें प्राप्त प्रतिमें दूसरे सर्गका अंतिम एवं तीसरेका प्रारंभिक अंश, मध्यवर्ती दो पत्रोंके नहीं मिलने से कम रह जाता है अतः अन्य प्रतिकी शोध अत्यावश्यक है। प्राप्त प्रतिके आधारसे काव्य-विवरण नीचे दिया जा रहा है । आदि- ॥ श्रीपरमगुरुश्रीहेमविमलसूरिगुरुभ्यो नमः ॥ श्रीमन्नाभिनरेन्द्रनन्दनजिनस्तन्यात् सधन्यात्मनामुद्यत्कुन्तलमालिकाम्रदलभृत्कल्याणकुम्भः शुभम् । यः सवृत्त इति प्रतिष्ठितपरः श्रीमुक्तिसीमन्तिनी, मूर्धन्युद्धृतशुद्धकेवलकलानिस्संगगंगाजलः ॥ १ ।। प्रथम सर्गमें श्लोक संख्या ५२ है । इसके अन्तमें यह प्रशस्ति लिखी है:___ "इतिश्रीसुमतिसंभवनामके महाकाव्ये देश-देशाधिप-पर्वत-परंपरादिवर्णनो नाम प्रथमः सर्गः सम्पूर्णः ॥ द्वितीय सर्गके ४१ श्लोक हैं, तत्पश्चात् पत्रांक ५-६ नहीं होनेसे अपूर्ण रह गया है । तृतीय सर्गके ५२ श्लोक हैं, इसमें "....."जन्मोत्सव-लेखशालाग्रहण-यौवनवयःप्रारंभादि वर्णन" विषय है । चतुर्थ सर्गके ६१ श्लोक हैं जिसमें “....."चन्द्रोदय-सूर्योदय-दीक्षो [ देखो-अनुसंधान टाइटल पेज ३] For Private And Personal Use Only
SR No.521716
Book TitleJain_Satyaprakash 1954 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1954
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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